Tuesday, 23 July 2024

धंधेबाज़ फिर धंधे पर!

नौनिहालों को नोच-नोच,

ये देखो नटूए नाच रहे हैं।

इजलास के जलसे में जो,

रामकथा को बाँच रहे हैं।


लीपपोतकर लीक-वीक,

ये लोकलाज भी लील गए।

इंसाफ़ के अंधे बुत के, 

कल-पुर्ज़े सारे हिल गए।


लिए तराज़ू खड़ी हाथ में,

बाँधे पट्टी आँखों में।

सुबक-सुबक कर रो रही,

बेवा ख़ुद सलाखों में।


गठबंधन का नया ज़माना, 

मुंसिफ़ और बलवाई का।

नीति-न्याय के लम्पट-छलिए, 

बहसी-से कसाई का। 

 

बेचारी विद्या की अर्थी,

विद्यार्थी के कंधे पर।

इंसाफ़ सफ़्फ़ाक़ साफ़ है,

धंधेबाज़ फिर धंधे पर!