विश्व की बहुमत 'बकरियाँ' तू,
नहीं तनिक भी घबराना।
अल्पमत इन 'बाघों' के गर्जन,
की नियति केवल छा जाना।
चाय है बस, 'बाघ-बकरी' यह!
नहीं इसे तू पी लेना।
इसे बना बस 'उन्हें' पिलाओ
बेच बेचकर जी लेना।
'इनको' सहना, धीरज रखना,
तेरे भी दिन बहुरेंगे।
नक्षत्र ग्रह गोचर मंडल,
तेरी कुंडली में उतरेंगे।
फिर पलटेंगे भाग्य तुम्हारे,
तू भू मंडल पर छाएगा।
तेरी यशगाथा को सुनकर,
पप्पू भी पछतायेगा।
जय श्री राम की विजय-दुंदुभि,
गौरव उदात्त अक्षय होगा।
'बाघ-बकरी' की चाय की दहशत,
'रोम-रोम' में भय होगा।