माना भूखे हो तुम!
गरीब हो!
फटेहाल हो!
बीमारी से जर्जर हो!
लील भी लेगी,
ये भूख!
ये गरीबी!
ये बीमारी!
सब मिल के तुमको।
किन्तु!
आखिर लिखूंगा,
तो
मैं ही!
दिल दहलानेवाली,
धाकड़ करुण- कविता!
तुम्हारी भूख पर!
तुम्हारी गरीबी पर!
तुम्हारी बीमारी पर!
पृष्ठभूमि में होगी!
तुम्हारी मौत की
मर्मान्तक तस्वीर!
मुखपृष्ठ पर और साथ में ,
माल्यार्पण करते
गिद्ध, चील।
और भाषण की
भौंक-से भोंकते
कुत्ते।
पाऊंगा ज्ञानपीठ!
चढ़कर तुम्हारी ही पीठ।
छिछियाते-छौने,
छिछोरे तुम्हारे,
पढ़ेंगे यह कविता।
अपनी पाठ्यपुस्तक में,
जहरीले 'मिड डे मिल' वाले
सरकारी प्राइमरी स्कूल की।
शिक्षा के अधिकार के तहत!
यूँ ही मरते रहोगे,
तुम गरीब, हर काल में!
लहलहाती रहेगी फसल,
कविता की हमारी!
और टंके रहेंगे
देदीप्यमान नक्षत्र-से!
साहित्य-सम्मेलन की छत में,
मुझ सरीखे, प्रगतिशील!
कालजयी कवि!
गरीब हो!
फटेहाल हो!
बीमारी से जर्जर हो!
लील भी लेगी,
ये भूख!
ये गरीबी!
ये बीमारी!
सब मिल के तुमको।
किन्तु!
आखिर लिखूंगा,
तो
मैं ही!
दिल दहलानेवाली,
धाकड़ करुण- कविता!
तुम्हारी भूख पर!
तुम्हारी गरीबी पर!
तुम्हारी बीमारी पर!
पृष्ठभूमि में होगी!
तुम्हारी मौत की
मर्मान्तक तस्वीर!
मुखपृष्ठ पर और साथ में ,
माल्यार्पण करते
गिद्ध, चील।
और भाषण की
भौंक-से भोंकते
कुत्ते।
पाऊंगा ज्ञानपीठ!
चढ़कर तुम्हारी ही पीठ।
छिछियाते-छौने,
छिछोरे तुम्हारे,
पढ़ेंगे यह कविता।
अपनी पाठ्यपुस्तक में,
जहरीले 'मिड डे मिल' वाले
सरकारी प्राइमरी स्कूल की।
शिक्षा के अधिकार के तहत!
यूँ ही मरते रहोगे,
तुम गरीब, हर काल में!
लहलहाती रहेगी फसल,
कविता की हमारी!
और टंके रहेंगे
देदीप्यमान नक्षत्र-से!
साहित्य-सम्मेलन की छत में,
मुझ सरीखे, प्रगतिशील!
कालजयी कवि!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20 -07-2019) को "गोरी का शृंगार" (चर्चा अंक- 3402) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सटीक, सार्थक, सशक्त, कटाक्ष कथित कालजयी कवियों पर!!!! 👌👌👌
ReplyDeleteकुटिल, कालजयी , कवि अनोखे,
भरें दिखें भीतर से थोथे
संवेदनहीन , शब्द व्यपारी
शिखर चढ़े लिख प्रेम के पोथे!!!
वाह!बहुत आभार आपके छंदबद्ध आशीष का।
Deleteशब्द व्यपारी----व्यापारी 🙏🙏
Deleteसटीक शब्द🙏🙏
Deleteकटु कटाक्ष. लेकिन सत्य का सारांश अपने आप में समेटे ।
ReplyDeleteआभार आपके विचारों का।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteकवि के कृतित्व और व्यक्तित्व की यथार्थपरक मार्मिक झाँकी प्रस्तुत करते हुए आपने कवि कर्म पर कालजयी सवाल भी खड़े कर दिये हैं।
ReplyDeleteकवि तो लिखता रहेगा अपने भावपूर्ण चिंतन की इबारत अब पढ़नेवालों पर निर्भर है वे किस प्रकार मूल्यांकन करते हैं।
सवाल कवि-कर्म की ओट में क्षरण होने वाले नैतिक मूल्यों और कवि-धर्म पर है, संवेदना की तिजारत पर है। अत्यंत आभार आपकी समीक्षा-दृष्टि का।
Deleteजबरदस तंज है विश्वमोहन जी साथ ही मर्म तक भेदता।
ReplyDeleteपर एक बात कहना चाहूंगी कि ऐसा सिर्फ कवि ही नहीं कर रहे हर लेखन क्षेत्र में गरीबी ,लाचारी ,मानवगत सभी संवेदनाएं को सरेआम भुनाया जा रहा है ,यहां तक कि सामाजिक संस्थाएं भी ऐसे ही आयोजन करती है जहां नाम हो खबर छपे तस्वीर निकाली जाए मानो भुख और गरीबी एक हथियार बन गया हर क्षेत्र में।
जी, शत-प्रति-शत सहमत। व्यावसायिकता ने संवेदना-भाव और मूल्यों को दबोच लिया है। आभार आपकी दृष्टि का!!!
DeleteAapka lekh ati sundar hai.
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteविश्वमोहन जी कटु कटाक्ष...
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआप का वर्णन बहुत बढ़िया है
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआज कोरोना जयी हो ली कविता भी।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
DeleteHurrah, that’s what I was exploring for, what stuff! present here at this webpage, thanks, admin of this web page.
ReplyDeleteआभार।
DeleteI feel very grateful that I read this. It is very helpful and very informative and I really learned a lot from it.
ReplyDeleteआभार।
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ReplyDeleteआभार।
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