आसमान भी रो रहा था,
धरती पानी- पानी थी।
काली बाड़ी खप्परधारी,
चुप्पी ये बेमानी थी।
भैरव भी सावन के अंधे,
हुगली हो ली काली थी।
आयुष- मंदिर नागपंचमी,
उषा क्रूर जहरीली थी।
शील भंग है हुआ बंग का,
ममता तेरी नंगी है।
या देवी सर्व भूतेषु,
अब राजनीति से रंगी है।
अब न हेर तू मुँह हिंजड़ों का,
उठ अब तू ये ले सौगंध।
धार कृपाण हे छिन्नमस्तिका,
कर दे अरि को अब कबंध।