Saturday, 30 January 2021

गुणवत्ता - लघुकथा

 राजा तो दोनों ही थे। दोनों जनता से चुनकर भी  आए थे। पहले ने अपने मित्रों के साथ गठबंधन कर सरकार बनायी। 'मित्रों' की गुणवत्ता इतनी बढ़िया थी कि उसे दुश्मनों की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ी।

 और दूसरा! अपने दमख़म पर। उसके चारों ओर  केवल दुश्मन ही दुश्मन। किंतु, दुश्मनों की 'गुणवत्ता' इतनी उत्कृष्ट कि अब उसे किसी मित्र की कोई आवश्यकता नहीं! एकला चलो !

Tuesday, 26 January 2021

मेरी लघुकथा

 भइया! हम बेजुबान किसान मज़दूर, गरीब-गुरबा और बिना टेक्टर वाले जरूर हैं, लेकिन दलाल, दंगाई और देशद्रोही नहीं!!!!

हम तो कोरोना में हज़ार माइल पैदले अपने गांव चले आये, हमार बेटी बीमार बाप को साइकिल पर बइठा के गुड़गांव से दरभंगा पहुंचा दी। लेकिन न किसी ने हमें टेक्टर पर बईठाया, न ही हमने किसी के आगे हाथ पसारा।

जय जवान, जय किसान।

Thursday, 21 January 2021

'संवेदन-शीलता की नामर्दी'!

 भारत में कोरोना के टीके पर मचा अनावश्यक विवाद भारत के समाज शास्त्र के एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर संकेत तो कहीं नहीं करता है! ऐसा नहीं है कि इससे पहले कभी टीके नहीं लगे? पहले से अधिकांश टीके छोटे बच्चों और महिलाओं को ही लगते आ रहे हैं। किन्तु, अबकी बार यह वयस्क मर्दों को भी लगने वाला है। इसीलिए तो अबतक महिलाओ और बच्चों के टीके पर चुप रहने वाला 'मर्द' समाज अबकी बार अत्यंत संवेदनशील हो गया है। क्या कहेंगे इसे- 'मर्दों की संवेदनशीलता' या 'संवेदन-शीलता की नामर्दी'!