Friday, 19 February 2021

अँधेरा बो रहा है!

 दिखाने को तो बस एक ही दिखाता

सारा संसार डबल जी रहा है।


नुमाइश ही भर है, लाजो सरम की,

भीतर-ही-भीतर गैरत पी रहा है।


खंजर जिगर पर पीछे से लगाकर,

जख्म अंदर और बाहर सी रहा है।


रुखसार पर है  हंसी का ही पहरा,

आस्तीन में पोसे वो साँप ढो रहा है।


लबों को कर लबरेज मीठी बोली से,

मैल है अंदर और बाहर धो रहा है।


वस्ल-ए-मुहब्बत, जिस्मानी जहर जो,

उजाले में वो, अंधेरा बो रहा है।