सुना है
कई दिनों से
कस के बांधी गयी
लाल फीते में
एक फ़ाइल
खुल गयी है।
दिन पर दिन
जमायी जा रही
वक़्त की सर्द गर्द पर
रेंगने लगे थे
शफ्फाक श्वेत दीमक
वैचारिक तंद्रा के।
कि खोल दिया
किसी ने
पिछली सदी से
बंद तहखाने में
पीढ़ियों के,
'पेंडोराज बॉक्स'!
पल्लवी फूटी है
विवेक-विटप-से
अनुपम पिटारे से
भानुमति के इस्स!
ईशोपनिषद के
अमिय वाक्य!
"हिरण्मयेन पात्रेण
सत्यस्य मुखम्
अपिहितम् अस्ति।
पूषन् तत्
सत्यधर्माय दृष्टये
त्वम् अपावृणु ॥"
फाइल के खुलते ही
उसमें बंद
उजली-सी बर्फ
पिघलने लगी है।
बहने लगी है बनकर
गरम खून की धार।
कश्यप का कपार
लूट, बलवा, बलात्कार।
फ़ाइल में
करीने से सजे
पृष्टों से गूंज रहा
खामोशी का प्रचंड नाद।
नोट पेज भरे हुए हैं
तहरीर से
दोगले नुमाइंदों के।
वाराह ने मूल उठाया
सतीसर बह गया।
हो गया 'का' 'शिमिर'।
जान गई है अब ये
रिपब्लिक जनता कुछ!
और बौरा गए हैं
सौदागर मौत के
खुल जाने से
अपनी फ़ाइल के।