Saturday, 27 April 2019

इन्साफ का इन्कलाब।

विचित्र विडंबना है भाई
' बेसिक - स्ट्रक्चर ' गड़बड़ाई।
फैल गई
अब बात
घर घर।
हुए 'केशवानंद भारती'
पसीने से
तर - ब - तर।

तुला न्याय की
डोल गई।
कलई अपनी
खोल गई।
"मुजरिम ही हो भला
मुंसिफ!"
कचहरी ही, ये पोल
खोल गई।

देवी न्याय की
दिग दिगंत,
पीट गई
' विशाखा ' ढोल।
खुद के
नक्कारखाने में,
भले
तूती सी बोल।

ई- टेंडर ने
कर दिया,
टेंडर फिक्सिंग
गोल।
'बेंच-फिक्सिंग'
रह गया
बिन तोल के
मोल।

मांग रही
अवाम अब,
इन्साफ का
हिसाब।
धो दें, जनाब,
अंदरुनी
आजादी का
खिजाब।

फरेब का
उतार दें,
हुज़ूर
ये हिजाब।
कीजिए
इन्साफ का,
बुलंद
इन्कलाब।