विश्व की बहुमत 'बकरियाँ' तू,
नहीं तनिक भी घबराना।
अल्पमत इन 'बाघों' के गर्जन,
की नियति केवल छा जाना।
चाय है बस, 'बाघ-बकरी' यह!
नहीं इसे तू पी लेना।
इसे बना बस 'उन्हें' पिलाओ
बेच बेचकर जी लेना।
'इनको' सहना, धीरज रखना,
तेरे भी दिन बहुरेंगे।
नक्षत्र ग्रह गोचर मंडल,
तेरी कुंडली में उतरेंगे।
फिर पलटेंगे भाग्य तुम्हारे,
तू भू मंडल पर छाएगा।
तेरी यशगाथा को सुनकर,
पप्पू भी पछतायेगा।
जय श्री राम की विजय-दुंदुभि,
गौरव उदात्त अक्षय होगा।
'बाघ-बकरी' की चाय की दहशत,
'रोम-रोम' में भय होगा।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ मार्च २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी, आभार!!!
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी, बहुत आभार!!
DeleteIt is said that a picture is worth thousand words, but in your case it is the other way round. You give the pictures an extra dimension by your writing. You have managed to give contemporary political commentary based on a whacky cartoon. Also love the use of pun in the closing sentence !!👌👌
ReplyDeleteIt is always a privilege to accept your comments with obvious relish! Thanks a lot!!!
Deleteबहुत खूब आदरणीय कविवर!! इसे कहते हैं कहीं पे निगाहें- कहीं पे निशाना 🤗🤗
ReplyDeleteपर---
चाय की महिमा अपार
हो किसी भी ब्रांड का प्याला
गरमाये राजनीति खूब
मिले आनंद मतवाला
फटकरी लगे ना हींग
मिले रंग चोखा -चोखा
पिलाकर चाय कुछ साल
पाएं PM बनने का मौका !!! 🤗😃
सादर 🙏🙏
वाह! इसे कहते हैं व्यंग्य की बिरयानी में राजनीति का रायता!!
Deleteये बाघ बकरी चाय तो राजनैतिक निकली .... मुझे तो लगा था कि कुछ पारिवारिक मामला है .. :):)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य ... आनन्द आया पढ़ कर ..
मतलब जय श्री राम से आप रोम तक पहुँच गये ...
भला बकरी की क्या विसात कि बाघ की बात को उसके राज्य की सीमा से बाहर ले जाय!!!! बहुत आभार कि इस व्यंग्य ने आपको आनंद दिया। :)
Deleteबहुत बढ़िया लिखा है सर
ReplyDeleteजी, बहुत आभार!!!
Deleteउव्वाहहहहहहहह
ReplyDelete'बाघ-बकरी' की चाय की दहशत,
'रोम-रोम' में भय होगा।
सादर नमन
जी, बहुत आभार!!!
Deleteबहुत बढ़िया व्यंग्य..
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteख़ालिस बिहारी बाँकपन । ब्लॉग का नाम भी ।
ReplyDeleteजय बिहार, जय भारत, जय विश्व!!!😀🙏🙏
Deleteबहुत बढ़िया,व्यंग भी,उमंग भी,राजनीति का रंग भी ।
ReplyDeleteआपकी कविता आनंदित कर गई ।
जी, अत्यंत आभार आपके सुंदर शब्दों का!!!
Deleteमैं आपके इस कटाक्ष को समझ गया आदरणीय विश्वमोहन जी। समझ गया, इसीलिए भरपूर आनंद भी ले पाया।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआभार🙏🏼
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