नौनिहालों को नोच-नोच,
ये देखो नटूए नाच रहे हैं।
इजलास के जलसे में जो,
रामकथा को बाँच रहे हैं।
लीपपोतकर लीक-वीक,
ये लोकलाज भी लील गए।
इंसाफ़ के अंधे बुत के,
कल-पुर्ज़े सारे हिल गए।
लिए तराज़ू खड़ी हाथ में,
बाँधे पट्टी आँखों में।
सुबक-सुबक कर रो रही,
बेवा ख़ुद सलाखों में।
गठबंधन का नया ज़माना,
मुंसिफ़ और बलवाई का।
नीति-न्याय के लम्पट-छलिए,
बहसी-से कसाई का।
बेचारी विद्या की अर्थी,
विद्यार्थी के कंधे पर।
इंसाफ़ सफ़्फ़ाक़ साफ़ है,
धंधेबाज़ फिर धंधे पर!