Monday, 26 April 2021

कोरोना का कलि काल

 


प्रकृति के पोर-पोर को,

दूह-दूह जो खायी है।

प्रतिक्रिया प्रतिशोध जनित,

यह कुदरत की कारवाई है।


काली करतूतों का जहर,

वायुमंडल में छितराया है।

ओजोन छिद्र के गह-गह में,

जीवाणु-गुच्छ भर आया है।


और मानुष के मानस में,

गरल का इतना भार बढा।

छिन्न-भिन्न प्रतिरोध की शक्ति

न औषध-उपचार चढ़ा।


काँपी धरती, फटा बादल,

और बवंडर छाया है।

हिमखंड टंकार में टूटकर,

महासागर लहराया है।


आसमान से टूटी बिजली,

 बाड़वाग्नि जलती है।

चूर्ण अश्म सब हुए भस्म,

हसरतें हाथ अब मलती है।


प्रलय पल वह महाकाल का

भयकारी-सा गर्जन है।

त्राहि-त्राहि के तुमुल रोर में,

होता सर्वस्व विसर्जन है।


तब भी ढोंगी लोकतंत्र का,

'बंग-भंग' नहीं रुकता है।

पाखंड का कुम्भीपाक,

हर की पौड़ी पर टूटता है।


प्राण-प्राण के पड़ते  लाले,

प्राण वायु न पाते हैं।

मरघट के पसरे मातम में,

 रोये भी  न जाते हैं।


कहीं खिलौने, कहीं चूड़ियाँ,

कहीं कलपती कुमकुम है।

कोरोना के कलि-काल में,

कवलित कलियां गुमसुम हैं।


जो भी सम्मुख वही जीवाणु,

वाहक माने जाते हैं।

संशय के  संकट में भी,

 'ग्राहक' पहचाने जाते हैं।


जमाखोर हैवानी कीड़े,

इंसानी मास्क पहनते हैं।

लाशों को ये लांघ-लांघ,

चांदी के सिक्के गनते हैं।


हैवानों की यही नस्ल 

जीवाणु कोरोना है।

दूषित हो जब अंदर-बाहर,

यही हश्र तो होना है।


हे मानस के सत्व भाव,

अब आओ हम आह्वान करें।

तामस तत्व व तिमिर काल का,

हम समूल संधान करें।









22 comments:

  1. अवतार आयेगा। कल्कि।

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    1. अब तो किसी अवतार की ही अपेक्षा है। जी, अत्यंत आभार!!!

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  2. बहुत ही सार्थक ,व्यंगमिश्रित रचना आदरणीय विश्व मोहन जी! कुदरत से खिलवाड स्वरूप मिली आपदा को सृष्टि की त्रिगुनात्मक प्रकृति में तामसी तत्व की बहुलता का प्रतीक मानना बहुत तर्कसंगत है! निश्चित रूप से सत्व गुण प्रधान व्यवहार ही इसका एकमात्र विकल्प है! दूषित कोरोना काल का अंत शीघ्र हो यही कामना है! रोचक और उद्देश्यपूर्ण रचना के लिए आभार और बधाई आपको 🙏🙏

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके आशीष का!!!

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  3. जी, अत्यंत आभार आपका।!!!

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  4. बहुत बढ़िया

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  5. कहीं खिलौने, कहीं चूड़ियाँ,

    कहीं कलपती कुमकुम है।

    कोरोना के कलि-काल में,

    कवलित कलियां गुमसुम हैं।-----ओह...बहुत गहरी रचना है...शब्द और समय दोनों ही एक जैसे हो गए हैं, सहमे हुए इस मंजर से।

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  6. हे मानस के सत्व भाव,

    अब आओ हम आह्वान करें।

    तामस तत्व व तिमिर काल का,

    हम समूल संधान करें।

    बहुत जरूरी है मानवता को जगाना नहीं तो समूल विनाश निश्चित है और शायद कलयुग का अंत भी.. बेहद मर्मस्पर्शी रचना।

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  7. आदरणीय सर, अत्यंत सुंदर संदेश देती हुई बहुत ही सशक्त रचना। यह कोरोनावायरस प्रकृति से किए गए खिलवाड़ और बढ़ते भौतिकवाद की देन है। यदि हम पुनः सात्विक भारतीय जीवनशैली को अपना लें तो हम स्वास्थ और चिरायु जीवन जी सकेंगे । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
    एक अनुरोध और, मैं ने अपने ब्लॉग पर एक कहानी डाली है "चुनचुन"। कृपया अपना आशीष व मार्गदर्शन दें, ब्लॉग पर यह मेरा पहला प्रयास है । पुनः आभार व प्रणाम ।

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    1. अत्यंत आभार। हम समय मिलते ही सबसे पहले आपकी कहानी पढ़ के आपको संदेश भेजते हैं।

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  8. वाह वाह!विश्वमोहन जी ,बहुत खूब ! हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  9. साथर्क और लाजवाब रचना सर

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  10. आपकी इस कविता के पारयण से बच्चन जी और दिनकर जी की कविताओं का स्मरण होने लगता है विश्वमोहन जी। यह बुरा वक़्त इंसान का ही लाया हुआ है, कुदरत का नहीं। लेकिन चाहे जैसे भी आया हो, इस वक़्त में हौसला तो रखना ही होगा।

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    1. जी, आपके आशीर्वचनों का बहुत आभार।

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  11. Summary of the current catastrophe...the cause and effect! So well presented!!

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