Tuesday 9 August 2022

राजतिलक की करो तैयारी

 श्वानों ने आज संगत की है,

राजतिलक अब कर दो मेरा।

बहुत ढुलके बिन पेंदी लोटे,

हम न चूकेंगे अबकी बेरा।


करिआ कुकुर बीच खड़ा था,

स्व वर्णी सब घेरे थे।

लटकी थीं जीभ चितकबरों की,

कलमुंहे मुंह  फेरे थे।


कुछ मगध, कुछ अंग देश,

कुछ मिथिला से आए थे।

लोकतंत्र धुन वैशाली की,

अपनी भौंक में लाए थे।


कहीं न कोई कुकर बचा था,

जो हो कुत्ता इकलौता।

कूटनीति की द्युत क्रीड़ा में,

सरमा पाणी समझौता।


फूटी लालटेन से लाली,

और छूटा पिनाक से सायक।

इंदिवर पंकिल लथपथ थे,

पुलकित थे सारे शुनक।


लाज सरम के बंधन टूटे,

जो अछूत थे, छूत बने।

धर्मी अधर्मी एक देख अब,

सारमेय थे अड़े तने।


हमीं है वे चौपाये जो,

पांडव सुरलोक लाए थे।

एकलव्य संधान शौर्य गुर,

द्रोण को दिखलाए थे।


दोगलापन दोपायों का अब,

नहीं रहेगी लाचारी।

वृकारी हुंकार भरे हैं,

राजतिलक की करो तैयारी।

#राजतिलककीकरोतैयारी

















22 comments:

  1. वाह ❤️
    बेहतरीन कटाक्ष किया है सर आपने।

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  2. हमेशा की तरह लाजवाब।

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  3. बहुत बढ़ियां

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  4. बिहार की शर्मनाक पलटीमार राजनीति पर सुन्दर कटाक्ष !
    लेकिन मेरा एक सवाल -
    हे कविराज, मध्यप्रदेश में जब ऐसा ही खेल हुआ था तो ऐसी ही चुटीली कविता आपने क्यों नहीं लिखी थी?

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    1. क्या मध्य प्रदेश, क्या कर्नाटक, क्या अरुणाचल, क्या महाराष्ट्र, क्या बिहार! इस हमाम में सभी नंगे हैं। यहां लेकिन पलटू बाबू (यह नाम उनके राजनीतिक भतीजे के जैविक पिता ने उन्हें दिया है) ने तो इस कहावत को चरितार्थ कर दिया, "सौ चोट सुनार के, एक चोट लोहार का।"
      अत्यंत आभार।

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    2. धोखे से चोट लगाने का शतक लगा चुके सुनार को इस पलटू लुहार की एक चोट बड़ी ज़रूरी थी.

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    3. इस कविता के नायकों ने धोखेबाजी की इसी गौरवमयी लोहारी चोट की महिमा को रेखांकित किया है😄🙏

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  5. राजनीति के गिरते स्तर पर करारी चोट!
    बढ़िया !!

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  6. चुनावों के मौसम में विद्रूप राजनीति करने वाले राजनेताओं को आईना दिखाती सशक्त अभिव्यक्ति आदरनीय विश्वमोहन जी।चौपायों की वफादारी की दोपायों से क्या तुलना!!!दोपाये सदा बिन पेंदी के लोटे बनकर अवसरवादी राजनीति करते हैं।कुटिल और कुत्सित राजनीति पर प्रचण्ड प्रहार करते सृजन के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏

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  7. उत्कृष्ट रचना

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  8. राजनीति की वास्तविकता पर सटीक प्रहार। उम्दा रचना।

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  9. वाह!!!
    कमाल का कटाक्ष बिन पेंदी के लोटों पर
    करिआ कुकुर बीच खड़ा था,

    स्व वर्णी सब घेरे थे।

    लटकी थीं जीभ चितकबरों की,

    कलमुंहे मुंह फेरे थे।
    क्या बात...
    लाजवाब , अद्भुत।

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