Monday, 29 August 2022

बेजुबान

 न राजा अनजान था।

न मुद्दालह परेशान था।

न मुद्दई हलकान था।

न मुख्तार नादान था।

न मुंसिफ बेईमान था।

बस मीनार बेजुबान था।


26 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 30 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 30 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-8-22} को "वीरानियों में सिमटी धरती"(चर्चा अंक 4537) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  4. बहुत बढ़िया आदरनीय कविवर 👌👌👌👌
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    निर्दोष भवन पर उतरी राजा की कुंठा ,
    बज गया आज उसके न्याय का डंका
    गफलत में चूर भ्रष्टाचारी की
    राख हो गई पल में सोने की लंका!
    सादर 🙏🙏

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  5. लम्बी जुबान का जो क्या वो मकान था ? :)

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  6. Replies
    1. बिल्कुल सही। जी, अत्यंत आभार।

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  7. बहुत सटीक अभिव्यक्ति।

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  8. बस मीनार बेजुबान था।
    बेजुबान ही ढ़हता है आजकल।
    बहुत सटीक... लाजवाब।

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  9. बहुत बढ़िया और सामयिक।

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  10. जो बेज़ुबान होता है , शामत तो उसी की आती है । वैसे भ्रष्टाचारियों को या कानून की धज्जियाँ उड़ाने वालों को ऐसी सज़ा मिलनी भी चाहिए । शायद आगे इससे कोई सबक सीखें ।।

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  11. अच्छी प्रस्तुति

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