Thursday 18 July 2019

कालजयी कवि!!!

माना भूखे हो तुम!
गरीब हो!
फटेहाल हो!
बीमारी से जर्जर हो!
लील भी लेगी,
ये भूख!
ये गरीबी!
ये बीमारी!
सब मिल के तुमको।

किन्तु!
आखिर लिखूंगा,
तो
मैं ही!
दिल  दहलानेवाली,
धाकड़ करुण- कविता!
तुम्हारी भूख पर!
तुम्हारी गरीबी पर!
तुम्हारी बीमारी पर!

पृष्ठभूमि में होगी!
तुम्हारी मौत की
मर्मान्तक तस्वीर!
मुखपृष्ठ पर और साथ में ,
माल्यार्पण करते
गिद्ध, चील।
और भाषण की
भौंक-से भोंकते
कुत्ते।

पाऊंगा ज्ञानपीठ!
चढ़कर तुम्हारी ही पीठ।
छिछियाते-छौने,
छिछोरे तुम्हारे,
पढ़ेंगे यह कविता।
अपनी पाठ्यपुस्तक में,
जहरीले 'मिड डे मिल' वाले
सरकारी प्राइमरी स्कूल की।
शिक्षा के अधिकार के तहत!

यूँ ही मरते रहोगे,
तुम गरीब, हर काल में!
लहलहाती रहेगी फसल,
कविता की हमारी!
और टंके रहेंगे
देदीप्यमान नक्षत्र-से!
साहित्य-सम्मेलन की छत में,
मुझ सरीखे, प्रगतिशील!
कालजयी कवि!