श्वानों ने आज संगत की है,
राजतिलक अब कर दो मेरा।
बहुत ढुलके बिन पेंदी लोटे,
हम न चूकेंगे अबकी बेरा।
करिआ कुकुर बीच खड़ा था,
स्व वर्णी सब घेरे थे।
लटकी थीं जीभ चितकबरों की,
कलमुंहे मुंह फेरे थे।
कुछ मगध, कुछ अंग देश,
कुछ मिथिला से आए थे।
लोकतंत्र धुन वैशाली की,
अपनी भौंक में लाए थे।
कहीं न कोई कुकर बचा था,
जो हो कुत्ता इकलौता।
कूटनीति की द्युत क्रीड़ा में,
सरमा पाणी समझौता।
फूटी लालटेन से लाली,
और छूटा पिनाक से सायक।
इंदिवर पंकिल लथपथ थे,
पुलकित थे सारे शुनक।
लाज सरम के बंधन टूटे,
जो अछूत थे, छूत बने।
धर्मी अधर्मी एक देख अब,
सारमेय थे अड़े तने।
हमीं है वे चौपाये जो,
पांडव सुरलोक लाए थे।
एकलव्य संधान शौर्य गुर,
द्रोण को दिखलाए थे।
दोगलापन दोपायों का अब,
नहीं रहेगी लाचारी।
वृकारी हुंकार भरे हैं,
राजतिलक की करो तैयारी।
#राजतिलककीकरोतैयारी
वाह ❤️
ReplyDeleteबेहतरीन कटाक्ष किया है सर आपने।
जी, बहुत आभार।
Deleteहमेशा की तरह लाजवाब।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteबहुत बढ़ियां
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteबिहार की शर्मनाक पलटीमार राजनीति पर सुन्दर कटाक्ष !
ReplyDeleteलेकिन मेरा एक सवाल -
हे कविराज, मध्यप्रदेश में जब ऐसा ही खेल हुआ था तो ऐसी ही चुटीली कविता आपने क्यों नहीं लिखी थी?
क्या मध्य प्रदेश, क्या कर्नाटक, क्या अरुणाचल, क्या महाराष्ट्र, क्या बिहार! इस हमाम में सभी नंगे हैं। यहां लेकिन पलटू बाबू (यह नाम उनके राजनीतिक भतीजे के जैविक पिता ने उन्हें दिया है) ने तो इस कहावत को चरितार्थ कर दिया, "सौ चोट सुनार के, एक चोट लोहार का।"
Deleteअत्यंत आभार।
धोखे से चोट लगाने का शतक लगा चुके सुनार को इस पलटू लुहार की एक चोट बड़ी ज़रूरी थी.
Deleteइस कविता के नायकों ने धोखेबाजी की इसी गौरवमयी लोहारी चोट की महिमा को रेखांकित किया है😄🙏
Deleteराजनीति के गिरते स्तर पर करारी चोट!
ReplyDeleteबढ़िया !!
जी, बहुत आभार आपका।
Deleteज़बरदस्त कटाक्ष ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteचुनावों के मौसम में विद्रूप राजनीति करने वाले राजनेताओं को आईना दिखाती सशक्त अभिव्यक्ति आदरनीय विश्वमोहन जी।चौपायों की वफादारी की दोपायों से क्या तुलना!!!दोपाये सदा बिन पेंदी के लोटे बनकर अवसरवादी राजनीति करते हैं।कुटिल और कुत्सित राजनीति पर प्रचण्ड प्रहार करते सृजन के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteराजनीति की वास्तविकता पर सटीक प्रहार। उम्दा रचना।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteकमाल का कटाक्ष बिन पेंदी के लोटों पर
करिआ कुकुर बीच खड़ा था,
स्व वर्णी सब घेरे थे।
लटकी थीं जीभ चितकबरों की,
कलमुंहे मुंह फेरे थे।
क्या बात...
लाजवाब , अद्भुत।
जी, बहुत आभार।
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