मंच से माइक में आवाज़ गूँजी – ‘ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।‘ क्या वाम! क्या दाम! क्या सियासती दल! क्या अवाम! सबने बाँग लगायी। ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा।‘
दौड़ी बेटियाँ।... गिरती।...... चढ़ती।..... उठती।... पड़ती।... ..बचते।... बचाते।..... छुपते।.......... छुपाते।...... सपने सजाते। ख़ूब पढ़ी। ख़ूब बढ़ी। रसोई से साफ़गोई तक।... बिंदी से हिंदी तक।... अंतरिक्ष से साहित्य की सरहद तक।.... गुरुदेव की गीतांजली से गीतांजलि बोकरती रेत-समाधि तक। दुनिया के टीले को अपनी ओढ़नी से तोप दिया। आला इनाम, उनके नाम! सबने दुलारा। सबने सराहा।
किंतु, मंच मौन! और ये सियासती भूत! न कोई खदबद। न कोई हुदहुद। न कोई खिलखिल। और न कोई मुबारकबाद! हाँ थोड़ी काग़ाफूसी ज़रूर! सिर्फ़ ‘वाद’!
बह गयी बेटी – ‘विचार-धारा’ में!
भारत की हर एक बेटी की अरदास - 'बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ, बेटी को सम्मानित करो, बेटी के गीत गाओ-लिखो ! बाक़ी तो सब ठीक भगवान ! लेकिन अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो.'
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबेटियों के जीवन की विसंगतियाँ बेटियाँ ही जाने। सिर्फ "वाद" में बह गई बेटियाँ!! यही सच है!शिक्षा और उपलब्धियोँ के उँचे आँकड़ों के साथ भी उनके आत्म निर्णय के अधिकार पर दूसरे ही निर्णय ले रहे हैं। शिक्षा और कर्तव्य के संस्कार सब होने चाहियेँ उनमें पर अपने अधिकारों के लिए आज भी बड़ा तबका संघर्षरत है।एक अत्यंत सार्थक और मार्मिक लघुकथा जो अपने प्रतीकात्मक शीर्षक 'बेटी पढ़ाओ,बेटी बहाओ 'से न्याय करती है।🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबेटियों की पड़ी किसको है सब को अपना सिट्टा सेंकना है ,बेटी विमर्श के नाम पर।
ReplyDeleteयथार्थ पर कराया प्रहार।👌
जी, अत्यंत आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 9 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी, अत्यंत आभार।
Deleteएक ओढनी ऐसी भी।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteबेटियाँ पढ़ रही हैं .... बढ़ रही हैं ...... लेकिन सब हासिल करने के बाद भी उनके सपने टूट रहे हैं ..... दहशत में जीती हैं ..... अब नारे बेटियों के लिए नहीं बेटों के लिए होने चाहिए .....
ReplyDeleteसोच बदलो , समाज बदलो ।
विचारणीय लघु कथा ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteप्रभावशाली लेखन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
DeleteUnfortunately sloganeering and tokenism is the mainstay today.
ReplyDeleteGreat satirical piece. The language employed by you, also makes it a tribute to the author of "ret samadhi".
जी, अत्यंत आभार!!!
Delete'वाद' का विवाद तो हर प्रकरण के साथ जुड़ जाता है यह तो आज के दौर का सबसे पसंदीदा फैशन है चाहे बेटियाँ हों या कुछ और। लोग बस नारों में ही बदलाव ,सुधार जैसी बातें करते हैं जबकि कुछ और ही है। किसी भी वाद के अनर्गल प्रलाप से उड़ान भरती बेटियों को नभ छूने से नहीं रोका जा सकता है।
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ कहती सराहनीय लघुकथा।
प्रणाम
सादर।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteवाद के विवादों में फँसी स्त्री जाति की विडंबना।
ReplyDeleteलघुकथा अत्यंत कम शब्दों में व्यंग्य के साथ पूर्ण न्याय करती है, 'बेटी बहाओ' शब्दों का प्रयोग क्या टीस दे रहा है यह तो वे बेटियाँ ही समझ सकेंगी जो इस पीड़ा से गुजरी हैं।
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteचिंतनपूर्ण विषय बनकर रह गई है बेटी । आज भी कितनी बेचारी है, ये तो वही जाने, जिसके ऊपर गुजराती है । हर क्षेत्र में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष है बेटी के लिए ।
ReplyDeleteबहुत सराहनीय लघुकथा ।
जी, अत्यंत आभार।
Deleteसुंदर सराहनीय सृजन
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Delete👍
ReplyDeleteआभार!
Deleteआह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteसराहनीय लघुकथा।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteगुरुदेव की गीतांजली से गीतांजलि बोकरती रेत-समाधि तक।
ReplyDeleteअब क्या करे बेटी...दुनिया भर में नाम पर यहाँ सिर्फ वाद विवाद...
सही कहा पढ़ाओ नहींबेटी बहाओ
अत्यंत सारगर्भित लघुकथा।
जी, अत्यंत आभार!
Deleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
let's be friend
जी, अत्यंत आभार।
Deleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
let's be friend
आभार।
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