Wednesday, 12 May 2021

बदलेगा परिवेश!

 नहीं क्षितिज से छिटकी किरणें,

ना सूरज ने आंखे खोली।

रहा समुंदर सुस्त-सा सोया,

नहीं लहर ने लाली घोली।


खुसुर-फुसुर न गिलहरियों की,

न चहकी, चिड़िया हमजोली।

टहनी रही ठूंठ-सी लटकी,

देखो, पत्ती एक न डोली।


न ही समीर की सरर-सरर-सर,

न बगिया की बुलबुल बोली।

रही सिसकती सन्नाटे में,

संसार की सूरत भोली!


ऑक्सीजन आकाश से गायब,

प्राणवायु के प्राण हैं अटके।

अस्पताल बीमार सड़क पर,

फक-फक फेफड़ा दर-दर भटके।


श्मशान में भगदड़-सी है,

मुर्दे रोते जमघट में।

जलने की अपनी बारी का,

बाट जोहते मरघट में।


फिर भी लगता सौदागर कुछ,

नही अभी भी मानेंगे।

मानवता को नोच-नोच,

भर  लबना लहू  छानेंगे।


काले बाज़ार के जमाखोर ये,

मौत के पापी सौदागर हैं।

मास्क लगाए इंसानों-से,

हैवानी हमलावर हैं।


नहीं ठहरता समय एक-सा,

पहिया इसका घूमेगा।

सृष्टि का संस्कार धरा को,

अति शीघ्र ही चूमेगा।


दिग-दिगंत में  जीवन की,

कोंपल फिर अँकुरायेगी।

उषा की पहली अँजोर,

आशा की रश्मि लाएगी।


नहीं प्राण के पड़ेंगे लाले,

 नहीं विषाणु शेष!

मानवता मुस्कायेगी और,

बदलेगा परिवेश!












32 comments:

  1. मित्र, आशा की किरण सी तुम्हारी यह कविता हमारे निराश जीवन में आशा का संचार कर रही है.
    भगवान करे तुम्हारा यह आशावादी स्वप्न साकार हो.
    तुम्हारा स्वप्न साकार होने पर तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर भरने की व्यवस्था का दायित्व मेरा रहेगा.

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    1. जी, बस दायित्व निर्वाह हेतु तैयार रहें।😀🌹अत्यंत आभार इस आशीष और आश्वासन का।🙏

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  2. वाह। आशायें बनी रहें।

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    1. जी, अत्यंत आभार इन सकारात्मक भावों का।🙏🙏

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  3. दिग-दिगंत में जीवन की,

    कोंपल फिर अँकुरायेगी।

    उषा की पहली अँजोर,

    आशा की रश्मि लाएगी।



    नहीं प्राण के पड़ेंगे लाले,

    नहीं विषाणु शेष!

    मानवता मुस्कायेगी और,

    बदलेगा परिवेश!

    मृत से पड़ें मन में आशा का संचार कर रही है ये पंक्तियाँ। मुझे यकीन ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि कोरी आस भर नहीं है....ये सत्य है....जीवन कभी नहीं हारता ना हारेगा...रात चाहे कितनी भी काली हो भोर होना निश्चित है...जरूरत है सतर्कता और संयम की।साथ ही नाकरात्मक फैलाने वालों सी दूर रहने की।
    अद्भुत सृजन,सादर नमन आपको

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    1. जी, हृदय तल से आभार आपके इस सकारात्मक संदेश का!

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  4. दिग-दिगंत में जीवन की,

    कोंपल फिर अँकुरायेगी।

    उषा की पहली अँजोर,

    आशा की रश्मि लाएगी।---मन को ढांढस बंधाती हुई रचना।

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    1. आपके सुंदर शब्दों का अत्यंत आभार!!!

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  5. जी,अत्यंत आभार।

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  6. जी मेरे पास शब्द नहीं है इस रचना की सराहना के लिए। या फिर उतना काबिल भी नहीं।

    "सहज भाषा उत्कृष्ट रचना"

    (यही मेरी शब्दावली के ज्ञान का अंतिम स्तर है इस रचना की सराहना के लिए)

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    1. आपकी शब्दावली के इस उत्कृष्ट स्तर ने हमारे हृदय के गहनतम तल को गदगद कर दिया! अत्यंत आभार आपकी इस अनोखी अदा का!!!

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  7. दिग-दिगंत में जीवन की,
    कोंपल फिर अँकुरायेगी।
    उषा की पहली अँजोर,
    आशा की रश्मि लाएगी।
    तथास्तु।
    इन्ही आशा की रश्मियों के आने से हताशा का अंधकार दूर हो सकेगा। बहुत सुंदर रचना।

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके सकारात्मक भावों का!

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  8. आमीन! बस यही कह सकता हूँ आदरणीय विश्वमोहन जी आपके इन आशा से परिपूर्ण उद्गारों हेतु। बहता हुआ पानी और बीते हुए पल कभी लौट नहीं सकते; जिसके साथ जो हो चुका है, वह अनहुआ नहीं हो सकता। लेकिन हाँ, जो होना बाक़ी है, उसके लिए उम्मीद बांधी जा सकती है। और बांधनी भी चाहिए। आख़िर यह दुनिया उम्मीद पर ही तो क़ायम है। आपकी तो प्रत्येक रचना ही अति-प्रशंसनीय होती है विश्वमोहन जी। मैं भला क्या विशेष प्रशंसा करूं? जिस तरह डूबते को तिनके का सहारा होता है, उसी तरह दुखी इंसान भी उम्मीद से भरी बातों में जीने का सहारा तलाशता है। मैं आपसे तथा अन्य सभी कवि-कवयित्रियों से आशा से परिपूर्ण कविताएं ही रचने की प्रार्थना करता हूँ। निराशा का अंधेरा घना है। इसलिए आशा की किरण ही चाहिए। सूर्योदय की लम्बी प्रतीक्षा में स्थित प्राणी के निकट एक जलता हुआ दीप तो हो।

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    1. आशा अमर है जिसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। आपके सुंदर भाव और सुखद शब्दों का आभार!!!

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  9. सुन्दर रचना

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  10. Of late, you have touched upon the various cycles...of season, of nature, of life in quite a few of your poems. Most of these cycles are predetermined. The occasional hurdles which mar these cycles, like this pandemic along with its horrific bag of woes could well be avoided.
    Like all other poems before, this too ends on a positive and hopeful note.
    Keep spreading this optimism!!

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  11. बहुत सुंदर रचना

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  12. संक्रमण काल की प्रत्यक्ष - परोक्ष विसंगतियां और सांसों के सौदागरों का कुटिल मायाजाल! आज के निराशा के घोर तिमिर काल में भी आशाओं की गुंजाईश है। अच्छे दिन ना रहे तो ये संकट काल भी जल्द बीत जाएगा। यहीं संदेश देती भावपूर्ण रचना। हार्दिक शुभकामनाएं। सादर

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    1. जी, बहुत आभार आपके आशीर्वचनों का!!!

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  13. स्तब्ध हूँ इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति देख कर! यथार्थ का सटीक चित्रण!

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    1. जी, अत्यंत आभार, आपके सुंदर शब्दों का।

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  14. बहुत ही भावपूर्ण एवम आज के यथार्थ पर चोट करती एक गंभीर सृजन ।

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  15. समसामयिक हालातों का सटीक एवं सजीव शब्दचित्रण के साथ ही आशा का संचार करती बहुत ही लाजवाब रचना।
    वाह!!!

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    1. आपके अनुपम आशीष का आभार।

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  16. निशब्द, मेरे पास शब्द नहीं आपकी कविता की तारीफ के लिए! लेकिन सच में आपकी कविता साहित्य को एक नई दिशा देने में बखूबी भूमिका निभा रही है! उत्कृष्ट ऐसे ही लिखते रहिए!!

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके आशीर्वाद का🙏🙏

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