Wednesday 23 March 2022

फ़ाइल खुल गयी

 सुना है

कई दिनों से

कस के बांधी गयी

लाल फीते में

एक फ़ाइल 

खुल गयी है।


दिन पर दिन

जमायी जा रही

वक़्त की सर्द गर्द पर

रेंगने लगे थे

शफ्फाक श्वेत दीमक

 वैचारिक तंद्रा के।


कि खोल दिया

किसी ने

पिछली सदी से

बंद तहखाने में

पीढ़ियों के,

'पेंडोराज बॉक्स'!


पल्लवी फूटी है

विवेक-विटप-से

अनुपम पिटारे से 

भानुमति के इस्स!

ईशोपनिषद के

अमिय वाक्य!


"हिरण्मयेन पात्रेण 

सत्यस्य मुखम् 

अपिहितम् अस्ति। 

पूषन् तत् 

सत्यधर्माय दृष्टये 

त्वम् अपावृणु ॥"


फाइल के खुलते ही

उसमें बंद 

उजली-सी बर्फ

पिघलने लगी है।

बहने लगी है बनकर

गरम खून की धार।


कश्यप का कपार

लूट, बलवा, बलात्कार।

फ़ाइल में

करीने से सजे 

पृष्टों से गूंज रहा 

खामोशी का प्रचंड नाद।


नोट पेज भरे हुए हैं

तहरीर से

दोगले नुमाइंदों के।

वाराह ने मूल उठाया

सतीसर बह गया।

हो गया 'का' 'शिमिर'।


जान गई है अब ये

रिपब्लिक जनता कुछ!

और बौरा गए हैं

सौदागर मौत के

खुल जाने से

अपनी फ़ाइल के।


30 comments:

  1. रचना से आक्रोश बह रहा है..

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  2. लिहाजा वक्त के आगोश में कबतक छूपी रहती
    खामोशी के प्रचंड नाद को अब हम भी सुनेंगे..
    सत्य सार्थक रचना.. ये भी लिखना जरूरी है।
    बधाई

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  3. सार्थक रचना

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  4. जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने,
    लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।
    मानव पीडा की असह्य गाथा को दर्शाता ,उर्दू के माननीय शायर' मुज़फ़्फ़र रज्मी साहब 'का ये शेर हर दौर में प्रासंगिक है ।कश्मीर के निर्माण के समय अदूरदर्शी सत्ताधारियों ने जो गलतियाँ की,उस पर ना जाने कितने वो लोग जान निछावर कर गये जिन्हेँ जीना था, पर वो असमय मौत के मुँह में समा गए ।उससे भी बढकर अमानवीयता की हदें कश्मीरी पण्डितों पर हुये अत्याचार और मातृभूमि से उनका निष्काषन! उस पर भी दुखद ये कि हर अपराध पर्दे में रह गया।और जो सामने था अवसरवादी राजनीति के मौन में ढका गया।एक फिल्म के रूप में यदि कश्मीर की ढकी-लिपटी सच्चाइयाँ सामने आती हैं तो मानवता के छ्दम अपराधी कहाँ भला चैन से बैठेंगे, उनकी नींद उड़नी तय है,रजत पट पर अपने कुकृत्यों को हुबहू देखने के बाद।साधुवाद और आभार उन फिल्मी दुनिया के विरल और मेधावी दुस्साहसी लोगों का जिन्होने घोर संवेदनशील विषय पर फिल्म बना इतिहास की बंद फ़ाईल को को सरेआम खोलने का बड़ा जोखिम उठाया।जीवटता के धनी इन कर्मवीरों के सृजन और उसके विस्फोटक तात्कालिक परिणामों पर इस अनोखी समीक्षा रचना के लिए आपको साधुवाद 🙏🙏

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    1. जी, अत्यंत आभार आपके इस गहन अवलोकन और आपकी प्रखर समीक्षा का।

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  5. जी, अत्यंत आभार।

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  6. खुल गई
    फाइलें
    बाकी भी
    खुलेंगी आहिस्ता
    आहिस्ता..
    सादर नमन

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  7. फाइल के खुलते ही
    उसमें बंद
    उजली-सी बर्फ
    पिघलने लगी है।
    बहने लगी है बनकर
    गरम खून की धार।
    सत्य का मर्मस्पर्शी चित्रण ।

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  8. वाह आक्रोश व्यक्त करती अति सुन्दर रचना।

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  9. कभी तो सत्य सामने आना ही था । सतय का हृदयस्पर्शी चित्रण ..विश्वमोहन जी ।

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  10. फ़ाइल का खुलना और देश में एक नया दौर आना, कितनी सुंदरता से आपने इस बदलते हुए वक्त को बयान किया है, साधुवाद!

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  11. एक फाइल ने तहलका मचा रखा है ।।काश हर वो फाइल खुले जो दबा दी गयी है ।।
    फाइल खुलने से क्या क्या हो रहा है उसे सार्थक शब्दों में बयाँ किया है ।

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  12. जान गई है अब ये

    रिपब्लिक जनता कुछ!

    और बौरा गए हैं

    सौदागर मौत के

    खुल जाने से

    अपनी फ़ाइल के।

    अभी तो कितनी फाइलें खुलेगी और कितने सत्य बाहर आयेगें और पापियों का नाश होगा।
    आक्रोश व्यक्त करती अति सुन्दर रचना।सादर नमन आपको

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  13. गर्द में लिपटी फ़ाइलें जब जब खुलेंगी इतिहास का ऐसा ही कच्चा चिट्ठा खुलेगा । और आपकी लेखनी से ऐसी ही आक्रोश भरी उत्कृष्ट रचनाएँ निकलेंगी, कुछ लोग इस पर भी प्रश्न चिन्ह लगाएँगे ।
    इन फ़ाइलों को खोलने का दुस्साहस करने वालों का हार्दिक आभार ।
    सराहनीय रचना के लिए आपको बहुत बधाई, नमन और वंदन ।

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  14. फ़ाइल खुली, रोशनी मिली
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  15. बहुत सुन्दर !
    फ़ाइल खुली तो पिछली सरकारों की कायरता, नपुंसकता और अवसरवादिता का भी खुलासा हुआ. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आज की सरकार इस फ़ाइल में वर्णित अत्याचारों का निराकरण करने में कछुए की गति से भी धीमा क्यों चल रही है.
    क्या फ़ाइल सिर्फ़ 200 करोड़ का मुनाफ़ा कमाने के लिए ही खोली गयी है?

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    1. अब कछुए पर फ़ाइल का भी भार होगा😀🙏। जी, अत्यंत आभार।

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  16. सार्थक शब्दों में बयाँ किया है ।

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