Saturday 26 February 2022

महामारी का रोना!

उग रही हैं 

रिश्तों  की फ़सल,

जगह-जगह!

क्यारियाँ, कोले, 

खेत, फ़ार्म हाउस,

सब-के-सब। 

‘पट’ गए हैं 

इन रिश्तों से! 

कहीं मन के रिश्ते, 

कहीं निरा तन के!

कहीं धन के, 

तो कहीं 

सिर्फ़ आवरण के!

कहीं धराशायी हो रही है 

पककर पुरानी फ़सलें, 

तो कहीं अंकशायी 

सद्य:स्नात, लहलहायी!

कहीं  बोए जा रहे हैं 

बीज, संभावनाओं के!

कीटनाशक छिड़के जा रहे हैं।

डाले गए हैं थोड़े 

रासायनिक खाद भी!

रिश्तों का रसायन 

बनाने को!

कृत्रिम रिश्तों की 

इस पैदावार पर 

भारी पड़ गयी है,

प्रदूषित प्रकृति !

कभी सूखा,

कभी बाढ़,

कभी भूस्खलन, 

तो फिर रहे-सहे 

रिश्तों का दम 

घुटा  दिया है,

महामारी 'का रोना'  ने!


19 comments:

  1. जी, अत्यंत आभार!!!

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  2. बिल्कुल सही लिखा आपने।

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  3. कोरॉना - का रोना। रोचक अंदाज में महामारी कोरोना के कारण रिश्तों में आए तनाव और कलुष्ता को इंगित करती रचना। सच में कोरोना काल में रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई। समाज में इस दौरान आपसी सम्बन्धों एक नया इतिहास लिखा गया। जिनमें ज्यादातर मामली निराश करने वाले थे।🙏🙏

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  4. आदरणीय विश्वमोहन जी, नमस्ते👏! बहुत सुंदर रचना! महामारी कोरोना ने सचमुच रिश्तों को पुनः परिभाषित किया है। आपकी ये पंक्तियाँ:
    तो फिर रहे-सहे
    रिश्तों का दम
    घुटा दिया है,
    महामारी 'का रोना' ने!
    लाजवाब हैं। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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  5. मित्र, ऑल इस वेल ! डोंट वरी, बी हैप्पी !
    इंडिया इज़ शाइनिंग !

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    1. थ्री इडियट्स के महामना 'रेंचो शामलदास छांछड़' की याद आ गयी। अत्यंत आभार आपका!!!

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  6. सच है कि इस महामारी ने रिश्तों पर वज्रपात किया है ।
    पूरी रचना ही सोचने पर विवश कर रही है ।

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  7. सही कहा महामारी की मार सबसे ज्यादा रिश्तों ने ही झेली...इंसानियत जैसा रिश्ता तो भूल ही गये लोग...कोरोना या छूत समझ नहीं आया।
    बहुत सटीक जवं सारगर्भित सृजन।

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  8. कभी सूखा,

    कभी बाढ़,

    कभी भूस्खलन,

    तो फिर रहे-सहे

    रिश्तों का दम

    घुटा दिया है,

    महामारी 'का रोना' ने!

    सही कहा आपने . कोरोना के बहाने रिश्तों में बहुत दूरियां आईं । पहले ही लोग रिश्ता निभाने से कतराते थे । कोरोना ने मौका दे दिया बहाना बनाने का । बहुत सार्थक सृजन ।

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  9. बिल्कुल सही

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