Monday, 6 April 2020

दुकान से दूर। साहित्यकार!

आज सुबह-सुबह,
कुत्ते ने दौड़ा दिया मुझे।
मास्क नहीं लगाया था मैं !

कुछ अंधे भी नाराज हो गए।
एक दीप जला दिया था,
कल अंधेरे में!

बहरों ने भी
कोसा मुझे,
मन भर।

फोड़ दिए थे पटाखे,
तोड़ने को,
जीवन का मृत सन्नाटा!

श्वेत शुभ्रांगी का भी,
झेलना पड़ा।
चेहरा, लाल भुक्क!

उन्हें आईना जो दिखा दिया था!

उधर लाला ने सलाह दी
साहित्यकार को।
दुकान से दूर रहने की।

खिसिया के लिख दी है
मुआ ने।
कविता!

21 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 07 एप्रिल एप्रिल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी, बहुत आभार। हृदयतल से।

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  2. अच्छा व्यंग्य। यही वर्तमान परिस्थिति है।

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    1. जी, आभार आपके आशीष का!

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  3. ऐसा लगता है कि आपको कुत्ते और साँप से बहुत डर लगता है। हमारे शहर में तो अंधो ने भी दिए जलाए और बहरों ने भी पटाखे फोङे। लाला भी बेचारा जान प्राण देकर राशन पानी का इंतजाम कर रहा है। सही मे गलथेथलई।😄

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    1. 😀😀😀बिल्कुल स्वाभाविक है डर लगना! आज के कुत्ते और साँप कल के मनुष्य-से संवेदनशील होकर मानव-सुलभ प्रतिक्रियाएं जो देने लगे हैं। बहुत आभार आपकी इस बहुमूल्य प्रतिक्रिया का!😊😊😊

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7-4-2020 ) को " मन का दीया "( चर्चा अंक-3664) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  5. मधुर कटाक्ष !!!!!

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  6. सटीक कटाक्ष

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  7. सुंदर रचना

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  8. बहुत सुंदर व्यंग्यात्मक कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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    1. आभार। हम तो आपके ब्लॉग को कब से फॉलो करते आ रहे हैं और आपकी रचनाओं का लुत्फ भी लेते हैं।

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  9. सटीक ... सार्थक और लाजवाब ...
    मज़ा आ गया ...

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  10. सटीक व्यंग्य।

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