Wednesday 15 August 2018

नाम में क्या रखा है!!!!


जी, आज पंद्रह अगस्त है. सन सैंतालिस के १४ अगस्त के निविड़ तम प्रहर में जब दुनिया की अमूमन आधी आबादी औंघियायी हुई थी अपने मुकद्दर से करार करते एक नए हिन्दुस्तान के सूरज ने पूरब के क्षितिज पर दस्तक देना शुरू किया था. और तब से अपने आब और रुआब के शौकत को सरे आम करता यह सूरज आसमान में चढते जा रहा है. कोई शक नहीं कि बीते इकहत्तर सालों में हमने कई बुलंदियाँ छुई है और अब तो दूसरों की दहलीज़ को भी दहला  दे रहे हैं. लेकिन जो एक बात सबसे ज्यादा आज खटक रही है वह आम आदमी और जान माल के महफूज़ होने का सवाल है. जम्हूरियत की रूह भले ही मजबूती पकड़ी हो लेकिन यह सारी खुशफहमी औंधे मुंह गिरती दिखती है जब हम उन तमाम मसलों और दिक्कतों से लबरेज़ दीखते हैं, वो भी किसी ख़ास दिन कि हम घर से बाहर निकलने में उस दिन हिचकिचाते हैं. महफूज़ियत के ख्याल से वह दिन इतना खौफनाक होता है कि आम आदमी बाहर कहीं भी आने जाने में आना कानी करता है. सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था को भी धत्ता बताकर ऐसी वारदातें हो जाती हैं कि मन में भय और संशय का घर कर जाना लाजिमी है. ये माकूल समय है जब हम इस बात पर गौर फरमायें कि आखिर वह चूक कहाँ और कैसे होती है! हांलाकि अधिकांश चूकें गैर इरादतन और सिर्फ निरा लापरवाही का सबब ही होती हैं.

लापरवाही के एक ऐसे ही मिसाल से हमारा सामना कल हुआ. वाकया ये हुआ कि हम दिल्ली से पटना जाने के लिए गो एयर का विमान पकड़ने टी 2 टर्मिनल पहुंचे. कल यानी १४ अगस्त को. सारी दिल्ली तक़रीबन छावनी में तब्दील हो चुकी थी. सुरक्षा जांच के बाद हवाई अड्डे में प्रवेश हुआ. बोर्डिंग पास के काउंटर पर पहुंचा. हमसे पहले के यात्री को काउंटर वाले ने थोड़ी बहुत बतकुच्चन के बाद बड़े अधिकारी के पास भेज दिया. मसला था जमजम के अतिरिक्त भार के शुल्क का. यात्री का कहना था इस पर अतिरिक्त शुल्क देय नहीं है. खैर मेरी बारी आयी. पहले तो मैंने पूछ लिया कि ये जमजम क्या होता है. मैं आदतन जिज्ञासु जो ठहरा! मुझे पता चला कि मक्का से लाये पवित्र जल को जमजम कहते हैं. इसी बीच उसी विमान कंपनी के एक अन्य स्टाफ ने उस काउंटर क्लर्क को बताया कि वह यात्री सही थे. तबतक यात्री थोड़े असहज अवस्था में बड़े अधिकारी के काउंटर की तरफ बढ़ चले थे.

अब मेरी बारी थी. मेरा परिचय पत्र और टिकट लिया गया. फिर बोर्डिंग पास मिला और मैं सुरक्षा जांच के लिए आगे बढ़ गया. सुरक्षा जांच में फिर सामान की स्कैनिंग के साथ मेरा बोर्डिंग पास चेक किया गया और उस पर तसल्ली की मुहर लगा मुझे लौटा दिया गया. आदतन मैंने बोर्डिंग पास पर अपना द्वार संख्या पढ़ा और निर्दिष्ट द्वार संख्या ३१ की ओर बढ़ गया. १२:३५ अपराह्न में विमान की उड़ान निर्धारित थी. करीब १२:०० बजे द्वार संख्या परिवर्तन की घोषणा हुई और इसे उपरी तल पर द्वार संख्या ३५ में परिवर्तित कर दिया गया. थोड़ी अफरा तफरी के बाद विमान में प्रवेश के लिए फिर से बोर्डिंग पास और सुरक्षा जांच हुई. यहाँ से भी निवृत होकर मैं आगे बढ़ा.

फिर एक सुरक्षा जांच! होना भी चाहिए. कल १५ अगस्त ! वक़्त की दरकार! यहाँ एक महिला स्टाफ. उन्होंने हमें रोका. बोर्डिंग पास को जांचने के बाद उन्होंने वाकी टाकी पर किसी से पूछा कि क्या किसी 'लेवल फोर' पैसेंजर को आपने पास इशू किया है. पता नहीं दोनों में क्या बात हुई. हाँ उनके मुंह से एक मुस्लिम नाम का उच्चारण जरुर हुआ. मुझे आगे बढ़ने की अनुमति मिल गयी. लेकिन मेरा जिज्ञासु मन उनसे पूछ बैठा, ' मैडम, ये 'लेवल फोर पैसेंजर' क्या होता है.' उन्होंने मुझे टरकाने के अंदाज़ में त्वरित उत्तर दिया, 'सुरक्षा के ख़याल से संवेदनशील यात्री.'  थोडी देर तो मैं इसी ऊहापोह में रहा कि भला मेरे जैसे यात्री का सुरक्षा की अति संवेदनशीलता से क्या सरोकार! न ही मैं कोई अति विशिष्ट व्यक्ति और न ही कोई कसाई कसाव! खैर! आगे बढ़ा.

सुरक्षा जांच का एक और काउंटर. यहाँ पर सामान की तलाशी और बोर्डिंग पास की जांच! मैं आह्लादित था इस चाक चौबंद चेकिंग पर. सतर्कता की कसरत में कोई कसर नहीं! वहाँ से अब मैं विमान में प्रवेश करने वाला ही था कि जिज्ञासा की बुरी लत से परेशान मेरा मन रुककर 'लेवल फोर' पर विचारने लगा और वैचारिक विमर्श की विलक्षण विधा में इस बार मैंने भलीभांति अपने बोर्डिंग पास को शब्द दर शब्द पढना शुरू किया. मुझे तो मानों काठ मार गया! बोर्डिंग पास पर मेरा नाम लिखा था- 'मुहम्मद नवेद आलम'!  भाई, चाक चौबंद सुरक्षा जांच की चौकसी ने तो मुझे थर्राया ही, चिंता तो ये सताने लगी कि मेरे यात्रा-भत्ता के भुगतान का क्या होगा! मैं तत्काल समीप ही खड़े एक सुरक्षा अधिकारी की ओर लपका. उन्हें अपना टिकट दिखाया. परिचय पत्र दिखाया. मेरी बाल सुलभ शराफ़त पर गदगद होते बड़ी नम्रता से बोले, सर आप जाएँ, अपनी जगह लें. फिर मैंने विनती की, ज़रा मेरा बोर्डिंग पास भी देख लें. बोर्डिंग पास देखते ही उनकी सहृदय मुखाकृति पर वातानुकूलित-क्षेत्र-दुर्लभ पसीने की बुँदे छलक आयी. अब तो एयरलाइन्स और सुरक्षा अधिकारियों के बीच नीति और विधान के बहुमुखी व्याख्यान का आदान प्रदान प्रारम्भ हो गया. एक 'लेवल फोर यात्री' दूसरे नाम का परिचय पत्र लेकर "महाभारत में भगवान के भगीने अभिमन्यु" के कौशल को शर्मसार करता सुरक्षा का सातों व्यूह भेद गया! मुझे सलाह दी गयी कि यात्रा स्थगित कर दें, अगली विमान से भेज दिया जाएगा मानों मैं कोई लावारिस सामान होऊं और मेरे वारिस का इंतज़ाम अगली विमान में हो जाएगा. एक तो चोरी फिर बलजोरी! मैं अड़ गया.मेरी मीटिंग है पटना में. संभवतः मेरे सरकारी अधिकारी होने के छद्म रुआब से वे थोडा सहमे. फिर बोर्डिंग पास पर मेरे नाम को हाथ से सुधारकर अधिकारी ने एक हस्ताक्षर किया और मुझे ससम्मान फुसलाने के अंदाज़ में विमान के अतिविशिष्ट सीट पर बिठाया गया. इस आपाधापी में विमान नियत समय से एक घंटे विलम्ब से उड़ा. उड़ते विमान में फिर एक बार मेरे नाम की उद्घोषणा हुई और आग्रह (या आगाह!) किया गया कि विमान की व्योम बाला को आईडेंटीफाई कर दूँ.

तो इस वाकया ने १५ अगस्त के पूर्व दिवस की संवेदनशील सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी. हाँ एक सीख जरुर मिली कि हमारी हिन्दुस्तानी परम्परा में ब्रितानी शेक्सपियर का जुमला "नाम में क्या रखा है" नहीं चलेगा और आगे से अब अपने सामान के साथ साथ अपने नाम की सुरक्षा की जिम्मेवारी भी हमारी ही है. तभी इत्मीनान और सकून का जम्हूरियत-ए-हिन्द फूलेगा फलेगा! आज़ादी की सालगिरह मुबारक हो. जय हिन्द! जय विश्व!         

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