बाप रे!
सहनशीलता चरम सीमा पर है,
सभी सह रहे हैं, एक दूजे को।
सहिष्णुता में ही बदलता है रंग,
देख खरबूजा, खरबूजे को।
खाकी के कालेपन में ,
कल्लू भी खकिया गया है।
सहनशीलता के चक्कर मे
कानून भी सठिया गया है।
बीच चौक पर ,
कल्लू सीटी बजा रहा है।
और खाकी, सी सी टी वी का,
'एंगल' सजा रहा है।
कलुआ चालान काट रहा है।
खकिया गीता बाँट रहा है।।
'नारद' शनि बन गए हैं।
और शनि! सूरज बन ,
बाप-से तन गए हैं।
सुना है, जांच होगी।
न झूठ होगी, न साँच होगी।।
पंचों की पंचाट होगी।
न्याय की बंदरबाँट होगी।।
चैन के रैन-बसेरे होंगे।
सुलह के सबेरे होंगे।।
कुछ 'तेरे' कुछ 'मेरे' होंगे।
चोर-चोर मौसेरे होंगे।।
जनता की फिर होगी कुटाई,
खकिया-कलुआ भाई-भाई!
संस्कृति का ' शील' हरण होगा।
सहिष्णुता की सभ्यता का वरण होगा।।
जब से सभ्यता के इस नवोद्घोष में,
आबालवृद्ध सब नव-सहिष्णु हुए हैं।
विचारों के क्षीर सागर में हम,
जागे-से लगते विष्णु हुए हैं।
सहनशीलता चरम सीमा पर है,
सभी सह रहे हैं, एक दूजे को।
सहिष्णुता में ही बदलता है रंग,
देख खरबूजा, खरबूजे को।
खाकी के कालेपन में ,
कल्लू भी खकिया गया है।
सहनशीलता के चक्कर मे
कानून भी सठिया गया है।
बीच चौक पर ,
कल्लू सीटी बजा रहा है।
और खाकी, सी सी टी वी का,
'एंगल' सजा रहा है।
कलुआ चालान काट रहा है।
खकिया गीता बाँट रहा है।।
'नारद' शनि बन गए हैं।
और शनि! सूरज बन ,
बाप-से तन गए हैं।
सुना है, जांच होगी।
न झूठ होगी, न साँच होगी।।
पंचों की पंचाट होगी।
न्याय की बंदरबाँट होगी।।
चैन के रैन-बसेरे होंगे।
सुलह के सबेरे होंगे।।
कुछ 'तेरे' कुछ 'मेरे' होंगे।
चोर-चोर मौसेरे होंगे।।
जनता की फिर होगी कुटाई,
खकिया-कलुआ भाई-भाई!
संस्कृति का ' शील' हरण होगा।
सहिष्णुता की सभ्यता का वरण होगा।।
जब से सभ्यता के इस नवोद्घोष में,
आबालवृद्ध सब नव-सहिष्णु हुए हैं।
विचारों के क्षीर सागर में हम,
जागे-से लगते विष्णु हुए हैं।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी,अत्यंत आभार आपका।
ReplyDeleteविचारों के क्षीर सागर में हम,
ReplyDeleteजागे-से लगते विष्णु हुए हैं।
सत्यवान, सार्थक चिंतन
जी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteजवाब नहीं इस गलथेंथरई का....
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 07 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय विश्वमोहन जी प्रणाम, सर्वप्रथम आपको इस अनूठी एवं चिंतन से परिपूर्ण सृजन हेतु बहुत सारी शुभकामनाएं। आपकी लेखनी ऐसे ही अनवरत चलती रहे ऐसी कामना करता हूँ। सादर 'एकलव्य'
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteवाह! क्या शब्दो का चयन है - "खकिया कलुआ"। अप्रतिम।
ReplyDeleteअगर जो लोग कुछ वर्ष पहले के हो-हल्ला में सहिष्णुता और असहिष्णुता का परिभाषा नहीं समझ पाए थें पुनः वो अवसर आ गया है...समझ लें, नहीं तो फिर चूक जाएँगे।
जी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteवर्तमान में यही तो हो रहा है साहब।
ReplyDeleteवकील गिरी और पुलिश वाले मिल जाते है और फिर आम जनता की रक्षा का जाल बुनने की बजाए इसको दोनों तरफ से लुटा जाता है।
इस विषय पर कवि की जागृति जरूरी है। शानदार रचना।
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
आपके पृष्ठ का अवलोकन मैंने पहले भी किया है और आपकी अद्भुत विचार शैली से प्रभावित भी हुआ हूँ। अत्यंत आभासर।
Deleteअप्रतिम रचना। भाई भाई भी लड़ते हैं कभी कभी !!!
ReplyDeleteइस लड़ाई से जनता कुछ सीख ले तो बेहतर।
बिल्कुल सही। आभार।
Deleteसमसामयिक विषय पर सार्थक, सटीक रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
वाह!!विश्वमोहन जी ,खकिया और कलुआ......मान गए आपकी लेखनी का लोहा ...(पहले से ही माना हुआ है ) समसामयिक विषय पर ...सशक्त प्रहार करती हुई रचना 👍👍
ReplyDeleteआप अक्सर हमें झाड़ पर चढ़ा देती हैं। बहुत आभार।
Deleteबहुत खूब ,वर्तमान परस्थितियों पर करारा व्यंग्य ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। प्रणाम।
Deleteउत्तम।
ReplyDeleteवर्तमान हालात पर आपका सटीक चिंतन और लेखन बेहद उम्दा आदरणीय सर ।
सादर नमन शुभ रात्रि 🙏
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसमसामयिक विषय पर करारा व्यंग आदरणीय
ReplyDeleteविश्वमोहन जी । प्रतीकों के रूप में अभिनव प्रयोग । लेखन शैली हमेशा की तरह धारदार और शानदार। 👌👌👌सादर शुभकामनायें और बधाई 🙏🙏
जी, अत्यंत आभार आपका।
Deleteवर्तमान स्थिति का बहुत ही सटिक आकलन।
ReplyDeleteजी,अत्यंत आभार आपका।
Delete.एकदम अलग अंदाज़...बढ़िया और सुन्दर नज़्म
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
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