Tuesday 26 January 2021

मेरी लघुकथा

 भइया! हम बेजुबान किसान मज़दूर, गरीब-गुरबा और बिना टेक्टर वाले जरूर हैं, लेकिन दलाल, दंगाई और देशद्रोही नहीं!!!!

हम तो कोरोना में हज़ार माइल पैदले अपने गांव चले आये, हमार बेटी बीमार बाप को साइकिल पर बइठा के गुड़गांव से दरभंगा पहुंचा दी। लेकिन न किसी ने हमें टेक्टर पर बईठाया, न ही हमने किसी के आगे हाथ पसारा।

जय जवान, जय किसान।

17 comments:

  1. इस गणतंत्र पर्व पर इससे बढ़िया लघुकथा नहीं लिखी जा सकती..सुन्दर सार्थक सारगर्भित एवं समसामयिक सृजन के लिए आपको बधाई..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..जिज्ञासा सिंह..

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी संवेदना का हार्दिक आभार, जिज्ञासा जी!!!🙏🙏🙏

      Delete
  2. लेकिन जो किसान का भेष भरकर हुड़दंग मचा रहे हैं वो कौन श्रेणी के किसान हैं ☹️☹️

    ReplyDelete
    Replies
    1. उपद्रवी और अराजक तत्व! आभार आपकी सार्थक और पैनी दृष्टि की!🙏🙏

      Delete
  3. सही है...
    अपार सहनशक्ति मजदूरों के..भूखे रहकर भी कोई हंगामा नहीं।
    कुछ लोगों का पेट जादा ही भरा हुआ है, इसलिए तमाशा लगायें बैठे हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सटीक और संवेदनात्मक टिप्पणी। संस्कृति हमेशा सभ्यता को पछाड़ देती है। इसीलिए सभ्यता का चेहरा कुरूप और क्षणिक होता है। अत्यंत आभात।

      Delete
  4. जी, अत्यंत आभार!!!

    ReplyDelete
  5. सटीक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. बहुत सटीक ...समसामयिक
    लाजवाब लघुकथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अत्यंत आभार सुधाजी आपके सुंदर वचनों का।

      Delete
  7. मार्मिक बात कह दी दो चार पंक्तियों में..

    विशेष अभिनन्दन..

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, अत्यंत आभार आपके उत्साहवर्द्धन का!!!

      Delete