Tuesday 31 March 2020

कोरोना वायरस

बनकर
धड़कन धमनियों की
रगों में रेंगती
रक्त धाराएं
और
 श्वास-उच्छवास
की सुवास
देती है
अहसास मुझे
जीने का।
टपकी दो बूंदे
पसीने की तुम्हारी।
मेरे श्रमवीर दूत!

आज पसीना आ गया
मुझे
आनंदविहार के बस अड्डे पर।
काठ मार गया मुझे,
देखकर लकवाग्रस्त
बुद्धिवीर समाज!
रोज-रोज फट पड़ने वाली
बेसुरी आवाज
हिन्दू-मुस्लिम पर।
नहीं फूटी आज!
एक भी बोली!
मर गए सारे
परजीवी, ये मुआ बुद्धिजीवी।

छुप गए सारे सियार
अपनी मांद में।
अगर पहले ही
कोई कह देता
'आओ, रहो, ठहरो
अबतक तुमने हमें खिलाया
अब हमारी भी थोड़ी खाओ।
कयामत की इस घड़ी में
इस कदर
नेह न छुड़ाओ।
अब तुम्हे
 जाने नहीं देंगे'
तो भला !

वह 'नीति-निष्ठुरवा'
नहीं न बकबकाता
''तुम्हे आने नहीं देंगे''
चलो, मेरे श्रमजीवी मित्र!
झाड़ो !
रसायन की फुहार से धुले,
अपने 'सेनिटाइज्ड' तन को।
रोज-रोज पसीने से नहाती
बदबू में पसीने के
दम घुट जाता होगा
उस निगोड़े कोरोना का!
आज तो बेरहमी की इस बारिश में
दम ही तोड़ दिया होगा उसने!

आज लगा
गरीब तू नहीं!
तू तो खुद चल पड़ा
अपना बोझ रख
अपने माथे
अग्निपथ पर।
तू तो नहीं लदा
बोझ बनकर
हवाई उड़नखटोले में!
तू तो राजसी रुधिर है
सिंचनेवाले शिराओं को
इस मुल्क और इंसानियत की !
अवाम की अमानत हो तुम!


मेरे मज़दूर भाईयों!
बचो ।
और बचाओ।
अपने
और अपनों को।
अपने से ही!
एक हो जाओ।
लेकिन,अलग-अलग होकर।
'कोरोना-डिस्टेंसिंग'!
छोड़ो आसरा।
क्रांति का झुनझुना बजाते
उन डपोरशंखी
सियासी जमातों का।

इस बार याद रखो।
नहीं भेजी
 किसी 'लिबरेशन' आर्मी ने!
' पूरब की पहली लाल किरणों' की सौगात।
उल्टे परोस दी है
अपनी कुत्सित औकात।
उपहारों की श्रृंखला में
हे सर्व हारा!
पहले
'सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम '
अथवा सार्स!
और अब
कोरोना वायरस!

10 comments:

  1. सटीक अभिव्यक्ति। राजनीति यहाँ भी हॉकी खेलने लगी है।

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  2. आदरणीय विश्वमोहन जी . श्रमवीर का सम्मान बढाती और निष्ठुर व्यवस्था के साथ धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले पोंगापंथियों को फटकारती इस रचना पर निशब्द हूँ ! संकुचित मानस को लिए सुविधासम्पन्न लोग अगर इतना कहने की करुणा भीतर संजोये रहते तो बात ही क्या थी-

    -----आओ, रहो, ठहरोअबतक तुमने हमें खिलायाअब हमारी भी थोड़ी खाओ------

    यही थोड़ी सी संवेदनाएं दरकार थी उन लोगों के लिए जिनके कंधे पर समस्त अर्थव्यवस्था ढोईजा रही है , फिर भी वे खाली हाथ हैं | चंद दिनों तक उन्हें बैठकर खिलाने की हिम्मत किसी सत्ता में नहीं | इन पंक्तियों का कोई मोल नहीं जो आपने लिख दी --

    तू तो राजसी रुधिर है

    सिंचनेवाले शिराओं को
    इस मुल्क और इंसानियत की !
    अवाम की अमानत हो तुम!!
    सच में जो अपना बोझ खुद उठाकर चलने में सक्षम हो उसे कौन हरा सकता है ? उसे किसी का आसरा दरकार नहीं | बस खुद ही अपनों से मन से जुड़कर पर थोड़ा सा फासला रखकर अपनी सुरक्षा कर सकता है | साधुवाद इस अत्यंत संवेदनशील सृजन के लिए | सादर

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    1. आपकी समीक्षात्मक पंक्तियाँ अनमोल हैं। आपके अंदर श्रमिक वर्ग के प्रति उमड़ती करुणा की यह अभिव्यक्ति आपके विराट मानवीय पक्ष को उजागर करती है। सरदार पूर्ण सिंह की कालजयी रचना 'मज़दूरी और प्रेम' का स्मरण हो आता है। ऋषिकेश सुलभ जी ने बड़ी मार्मिक बात लिखी , " अपने जन्मस्थान से रोजी रोटी की तलाश में उखड़े ये लोग अपनी कर्म भूमि से उजड़कर अब वापस जन्मभूमि की ओर लौट रहे हैं। आपकी इस संजीवनी-शक्ति-सम्पन्न समीक्षा का हृदयतल से आभार।

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  3. वह 'नीति-निष्ठुरवा'
    नहीं न बकबकाता
    ''तुम्हे आने नहीं देंगे''
    चलो, मेरे श्रमजीवी मित्र!..करुणामय परिस्थिति और पलायन करते श्रमिक वर्ग के प्रति निष्ठुरता।
    सार्थक अभिव्यक्ति.

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    1. जी, अत्यंत आभार। हृदयतल से।

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  4. कोरोना ने जितना विचलित नहीं किया उतना मजदूरों के पलायन वाले दृश्यों और अब धर्म के नाम पर मानवता से होनेवाले खिलवाड़ ने किया है। मैं भी मजदूर की ही बेटी हूँ। 33 साल पहले पापा की कंपनी में लॉकआउट हो गया था 6 महीने के लिए। तब हम भी गाँव ही भागे थे। वहाँ अपनों ने भी गले नहीं लगाया था।
    "साईं इस संसार में मतलब का व्यवहार
    जब लगि पैसा गाँठ में, तब लगि ताको यार।"
    वे यादें ताजा हो गईं !!!
    मार्मिक अभिव्यक्ति।

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    1. आपकी यह बहुमूल्य टिप्पणी अविस्मरणीय है। आपके आशीष का आभार।

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  5. अगर पहले ही
    कोई कह देता
    'आओ, रहो, ठहरो
    अबतक तुमने हमें खिलाया
    अब हमारी भी थोड़ी खाओ।
    सही कहा पर इतना बड़ा दिल कहाँ इन बुद्धिजीवियों में......अन्नदाता से अन्न ही लिया सद्भावना नहीं ले पाये....
    तू तो राजसी रुधिर है
    सिंचनेवाले शिराओं को
    इस मुल्क और इंसानियत की !
    अवाम की अमानत हो तुम!
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सटीक भाव!श्रमवीर के लिए ऐसा उचित सम्मान!!!
    बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन।

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    1. आपकी संवेदना-सिक्त समीक्षा का अप्रतिम आभार।

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