Sunday, 22 September 2024

बस तीन बीघा की बात!





( तीन बीघा का छोटा-सा गलियारा एक बड़े भाई के बहुत बड़े दिल की दास्ताँ है। हिंदुस्तान का बांग्ला देश को दिया गया ज़मीन का यह छोटा -सा टुकड़ा बांग्ला देश के भारतीय भूभाग से परिवृत अंगरपोटा-दहग्राम नामक पश्चिमी इनक्लेव (भू-टापू) को पूरब के पनबारी मौजा से जोड़ता है। १६ मई १९७४ को इंदिरा मुजीब समझौते की कोख से निकली इस भेंट को मोदी सरकार द्वारा  जून २०१५ में १०० वाँ संविधान संशोधन पारित कर क़ानूनी जामा पहना दिया गया। उत्तर-दक्षिण दिशा में लेटी भारतीय सड़क जिस चौराहे पर इस गलियारे के गले मिलती है, वहाँ बांग्ला नागरिकों के लियी बांग्ला देश का क़ानून और हिन्दुस्तानियों के लिए हिंद का क़ानून लागू होता है। दोनों नागरिकों को एक दूसरे के पथ पर भटकने की मनाही है।)


तन तंद्रिल टीस घाव सहा था,

दिल दूर पड़ा था, तड़प रहा था।


ना धमनी थी, नहीं शिरा थी,

खून नहीं, बहती पीड़ा थी!


ना चिट्ठी थी, ना पतरी थी,

दरम्यान गली संकरी थी।


सुन अजान, नमाज पढ़ते थे,

मन ही मन सबकुछ गढ़ते थे।


पर न कुछ कह-सुन पाते थे,

ख्वाहिश के नगमें गाते थे।


नेक खयाली फूल खिला दे,

परवरदिगार! उस पार मिला दे।


सुना सहोदर, आगे आया,

भाई को अपने गले लगाया।


सँकरे  मन की बलि चढ़ाई,

उल्फत की उसने गली बनाई।


छुटके को बड़के ने दी है,

बहुत बड़ी सौगात।


ले बिरादर! बखरा मेरा,

बस तीन बीघा की बात!

 

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 23 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. अच्छी जानकारी

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  3. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  4. बहुत सुन्दर रचना

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  5. एक राजनीतिक विषय पर फिर से पैनी कवि दृष्टि 👌
    कितना सरस और सौहार्द पूर्ण बना दिया है आपने इस तीन बीघा की बात को, हालाँकि यकीन करना मुश्किल है की वस्तु स्थिति इतनी प्रेमिल रही होंगी पर कवि मन की अपनी दुनिया है, जो पत्थर पर भी फूल उगा सकती है!

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    1. इतनी सारगर्भित और सरस टिप्पणी के लिए दिल से शुक्रिया।

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