Monday 12 August 2024

छिन्नमस्तिका!

आसमान भी रो रहा था,

धरती पानी- पानी थी।

काली बाड़ी खप्परधारी,

चुप्पी ये बेमानी थी।


भैरव भी सावन के अंधे,

हुगली हो ली काली थी।

आयुष- मंदिर नागपंचमी,

उषा क्रूर जहरीली थी।


शील भंग है हुआ बंग का,

ममता तेरी नंगी है।

या देवी सर्व भूतेषु,

अब राजनीति से रंगी है।


अब न हेर तू मुँह हिंजड़ों का,

उठ अब तू ये ले सौगंध।

धार कृपाण हे छिन्नमस्तिका,

कर दे अरि को अब कबंध।

20 comments:

  1. 🙏🏼 words fail to express how heinous this crime is. It shakes the roots of culture and society that we live in.

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    1. हार्दिक आभार, डॉक्टर सबीना! एक चिकित्सक होने के नाते भी इस दर्द के अहसास और जज्बात का एहतराम!!!🙏

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अगस्त 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. एक अंतस को भेद रही मर्मांतक अभिव्यक्ति है आदरणीय विश्वमोहन जी ! एक बेटी के साथ हुई ऐसी इस अमानवीयता के लिए निश्चित ही धरती और अंबर दोनों को रोना चाहिए! चिकित्सा के मन्दिर में एक बेटी जो मानवता की सेवा के लिए संकल्पित थी, को नारी देह की जोमर्मांतक असह्य पीड़ा भोगनी पड़ी उसका साक्षी बस ईश्वर है! उसने भी मासूम अभागी बिटिया की चीत्कार अनसुनी कर दी! रचना की आखिरी पंक्तियाँ ही समस्या का समाधान है! ईश्वर को गुहार से काम नही होने वाला! बेटियों को खुद दुर्गा और क़ाली बनकर आत्म रक्षा करनी होगी 🙏😞


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    1. हार्दिक आभार आपकी संवेदना से सराबोर इस टिप्पणी का।

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  4. "कर दे अरि को अब कबंध"

    इस पंक्ति ने सबकुछ कह दिया कि अभी क्या आवश्यक है और सबकी क्या इच्छा है।
    और जिनकी खून में अभी भी उबाल नहीं है शायद इसे पढ़कर उनमे उबाल आ जाये।

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    1. बिलकुल सही। शठे शाठ्यम समाचरेत। हार्दिक आभार आपके शब्दों का।

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  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  6. बहुत सुंदर

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  7. हृदय को स्पर्श करने वाली रचना

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  8. हृदयस्पर्शी रचना।

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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