दूषित हो गया है,
इस मुल्क का,
नून, ख़ून और क़ानून!
नहीं रही लाज,
कौड़ी के भाव, नून!
बुझाने लगा है प्यास
अब अपना ही ख़ून!
कोख से बाहर आते ही,
दम तोड़ देता क़ानून!
अब देखिए ना!
‘आईन-ए-निरोधक-गर्भपात!’
धरी रह गयी सारी
लियाक़त और लताफत!
मुआ, जाती नहीं है
यह आफ़त!
इस ज़ाबिता में
रोज़ लगते हैं घात!
नहीं रुकता गर्भपात!
कहीं चरित्र का,
कहीं चाल का!
कहीं सियासत का,
कहीं लोकपाल का!
सब कुछ.........
शफ़्फ़ाक साफ़’!
पेट में ही
गिर जाता इंसाफ़!
इंसानियत का सन्निपात!
उम्मीदों पर वज्रपात!
प्रतिभा पर घात!
बाहर हो बात,
भीतर घात!
अब कौन करे?
और कैसे करे?
बदलाव की बात!
जब हो जाता हो,
क्रांति का ही गर्भपात!
वाह🔥
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteयत्र-तत्र -सर्वत्र व्याप्त दिशाहीनता और आराजकता को
ReplyDeleteशब्दांकित करती खरी रचना।आज की क्रांतियाँ दिशाहीन और अल्पजीवी हैं जिनका किसी मानवीय बिंदू से कोई सरोकार नहीं है।कुव्यवस्थाओं से आहत कवि मन की प्रचंड अभिव्यक्ति ,जिसमें आपके लेखन की नयी शैली सराहनीय है 🙏🙏
जी बहुत आभार आपके आशीष का।
Deleteवज्र-सा अघात!
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteखरी खरी बात ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteदूषित हो गया है,
ReplyDeleteइस मुल्क का,
नून, ख़ून और क़ानून!
बहुत सटीक एवं लाजवाब
गजब की खरी खरी...
जी, बहुत आभार।
Deleteतात्कालिक सन्दर्भ में बहुत ही सार्थक एवं उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
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