तो भैया!
पिछली बार आए थे,
तो पूरी ‘जमात’ लेकर आए थे।
इस बार तो ,
मितरों से पितरों तक ।
‘खेला होबो न’ खेल कर,
महाकुम्भ-सा छा गए।
कब फूटेगा
तेरा यह कुम्भीपाक!
लेकिन कुछ तो है
जो ख़ास है तुममें!
माना म्लेछों ने भेजा तुम्हें
हिमालय के पार से।
पहले से कम थे क्या,
उनके चट्टे- बट्टे यहाँ!
फिर भी तुम तो
कुछ इंसान-से निकल गए।
कम से कम इंसाफ़ के मामले में!
न धनी, न अमीर
न देह, न ज़मीर।
न वाद, ना विवाद और
न ही कोई परिवाद
पूरा का पूरा साम्यवाद!
क्या बुर्जुआ, क्या सर्वहारा!
सबने सबकुछ हारा!
भले ही तू लीलता रहा,
अपनी लपलपाती जिह्वा से,
मौत का तांडव करता,
हवाओं में घोलता वाइरस,
अपने ज़हर का।
किंतु मेरे भाई !
नहीं बने ‘सौदागर’ ,
मौत के तू कभी!
दवाई, इंजेक्शन, ऑक्सिजन,
सबके जमाखोर!
ताल ठोकते रहे तुमसे,
चकले में हैवानियत के।
तनिक भी तूने, तब भी नहीं की,
मौत की कालाबाज़ारी!
डटे रहे राह पर बराबरी के,
‘सब धान बाइस पसेरी”
कूट-पीस
ReplyDeleteचुन-बीछ
झाड़-पोछ
ऊंच-नीच
सही-गलत
जाँच-परख
फटक-झटक
डर-मर
लड़-झगड़
कहर-मेहर
तितर-बितर
सुधर -बिगड़
इधर-उधर
समाज-घर
सभी को दरदरा कर
वाह! मित्र अपने तो शब्दों से जीवंत चित्र खींच दिया।बहुत आभार!!!
Deleteसटीक चित्रण
ReplyDeleteबेहद भयावह काल
जी, धीरज धारण करना ही अब धर्म है। बहुत आभार!!!
Deleteजी, अत्यंत आभार!!!
ReplyDeleteअपने मित्रों को औकात बोध फ़िर भी ना करा पा रिया। लगे हैं साथ साथ। लाजवाब।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार।
Deleteसत्य एवं सटीक पंक्तियाँ आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 -04-2021 को चर्चा – 4,051 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
जी, बहुत आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3012...कहा होगा किसी ने ऐसा भी दौर आएगा... ) पर गुरुवार 29अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।!!!
Deleteआपकी ज़ुबां से अवाम की आवाज़ निकली है विश्वमोहन जी। फ़र्क़ इंसान करते हैं, बीमारी नहीं।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सटीक कहा आपने विश्वमोहन जी, निःशब्द हूं,आज के परिदृश्य पर लिखी गई इस उत्कृष्ट रचना को पढ़कर,आपको सादर नमन ।
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteसमय के शब्द नहीं
ReplyDeleteकेवल
आंसू नजर आएंगे
जिनमें
बहुत शोर होगा
चीत्कार होगा
नहीं होंगे
बस
वे
जो उन आंसुओं का कारण हैं...।
बहुत गहरी रचना...। समय उन्हें भी अवश्य देख रहा है जो इस दौर में उसके मन की सुन रहे हैं, महसूस कर रहे हैं।
जी, बहुत आभार आपका!!!
Deleteआज की भयवाह स्थिति को दर्शाती रचना
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका!!!
Deleteशुक्र है आपने वर्तमान में चल रही मार-काट व लूट-खसोट पर सवाल तो दागा, वर्ना अधिकतर लोग तो हिम्मत ही नहीं दिखाते।
ReplyDeleteवे या तो तारीफ़ों के हवाइ पुल बांधते रहते हैं या फ़िर ऑस्ट्रिच-सा अपना सर रेत में घुसा देते हैं कि जैसे कुछ देखा ही नहीं, कुछ सुना ही नहीं
जी, बहुत आभार आपके सुंदर शब्दों के!!!
Deleteकोरोना से सीधा संवाद और उसका सटीक विश्लेषण, रचना के प्राण हैं आदरणीय विश्वमोहन जी! कथित साम्यवादियों की देन ये रोग, पूरे जोर -शोर से, सच में ही धर्म , जाति,ऊँच -नीच का भेदभाव किये बिना ही, गली -गली, घर घर में अपनी पहुँच बना साम्यवादी शैली में ही लोगों को लील रहा है! इस वायरस का स्वाभाविक ईमान और गुण- धर्म भी कवि दृष्टि से बच ना सका !इसी लिए कहते हैं, जहाँ ना पहुँचे रवि- वहाँ पहुँच कवि! लाजवाब चिंतन कोरोना के बहाने से ! सादर🙏🙏
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार आपकी सुंदर समीक्षा का!!!
Deleteसब धान बाइस पसेरी हो रहा । कोरोना में इंसान के लक्षण नहीं हैं। अभी तो इंसान में कोरोना के लक्षण ढूंढने में लगे रहते। जिस दिन कोरोना में इंसान के लक्षण दिखेंगे उस दिन वो अपनी मौत अपने आप मर जायेगा ।
ReplyDeleteझकझोर देने वाली रचना ।
जी, सत्य वचन। अत्यंत आभार।
Deleteहृदय तक उतरता सृजन ।
ReplyDeleteसटीक तीक्ष्ण दृष्टि।
तंज और व्यंग्य का अद्भुत मिश्रण सामायिक परिपेक्ष्य में सार्थक सृजन।
जी, बहुत आभार आपके सुंदर वचनों का!!!
Deleteसब धान बाईस पसेरी साथ ही बड़ा ही स्वाभिमानी..बिन बुलाए मजाल है कहीं पहुँच जाये
ReplyDeleteऔर जो बुलाए तो साम्यवादी भाव..।
लेकिन कुछ तो है
जो ख़ास है तुममें!
माना म्लेछों ने भेजा तुम्हें
हिमालय के पार से।
पहले से कम थे क्या,
उनके चट्टे- बट्टे यहाँ!
फिर भी तुम तो
कुछ इंसान-से निकल गए।
बहुत ही लाजवाब विश्लेषणात्मक सृजन
वाह!!!
जी, आपके आशीर्वचनों का आभार।
Deleteआभार!!
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