Wednesday, 28 April 2021

सब धान बाइस पसेरी

तो भैया!

पिछली बार आए थे,

तो पूरी ‘जमात’ लेकर आए थे।

इस बार तो ,

मितरों से पितरों तक ।

‘खेला होबो न’ खेल कर, 

महाकुम्भ-सा  छा गए।

कब फूटेगा 

तेरा यह कुम्भीपाक!


लेकिन कुछ तो है  

जो ख़ास है तुममें! 

माना म्लेछों ने भेजा तुम्हें 

हिमालय के पार  से।

पहले से कम थे क्या,

उनके चट्टे- बट्टे यहाँ!

फिर भी तुम तो 

कुछ  इंसान-से  निकल गए।


कम से कम इंसाफ़ के मामले में!

न धनी, न अमीर 

न देह, न ज़मीर।

न वाद, ना विवाद और 

न ही कोई परिवाद 

पूरा का पूरा साम्यवाद!

क्या बुर्जुआ, क्या सर्वहारा!

सबने सबकुछ हारा! 


भले ही तू लीलता रहा,

अपनी लपलपाती जिह्वा से,

मौत का तांडव करता,

हवाओं में घोलता वाइरस,

अपने ज़हर  का। 

किंतु  मेरे भाई !

नहीं बने ‘सौदागर’ ,

मौत के तू कभी!

 

दवाई, इंजेक्शन, ऑक्सिजन,

सबके जमाखोर!

ताल ठोकते रहे तुमसे,

चकले में हैवानियत के।

तनिक भी तूने, तब भी नहीं की, 

मौत की कालाबाज़ारी!

डटे रहे राह पर  बराबरी के,

‘सब धान बाइस पसेरी”


32 comments:

  1. कूट-पीस
    चुन-बीछ
    झाड़-पोछ
    ऊंच-नीच
    सही-गलत
    जाँच-परख
    फटक-झटक
    डर-मर
    लड़-झगड़
    कहर-मेहर
    तितर-बितर
    सुधर -बिगड़
    इधर-उधर
    समाज-घर
    सभी को दरदरा कर

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    1. वाह! मित्र अपने तो शब्दों से जीवंत चित्र खींच दिया।बहुत आभार!!!

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  2. सटीक चित्रण
    बेहद भयावह काल

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    1. जी, धीरज धारण करना ही अब धर्म है। बहुत आभार!!!

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  3. जी, अत्यंत आभार!!!

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  4. अपने मित्रों को औकात बोध फ़िर भी ना करा पा रिया। लगे हैं साथ साथ। लाजवाब।

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  5. सत्य एवं सटीक पंक्तियाँ आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 -04-2021 को चर्चा – 4,051 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 3012...कहा होगा किसी ने ऐसा भी दौर आएगा... ) पर गुरुवार 29अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. आपकी ज़ुबां से अवाम की आवाज़ निकली है विश्वमोहन जी। फ़र्क़ इंसान करते हैं, बीमारी नहीं।

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  9. बहुत सटीक कहा आपने विश्वमोहन जी, निःशब्द हूं,आज के परिदृश्य पर लिखी गई इस उत्कृष्ट रचना को पढ़कर,आपको सादर नमन ।

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  10. समय के शब्द नहीं
    केवल
    आंसू नजर आएंगे
    जिनमें
    बहुत शोर होगा
    चीत्कार होगा
    नहीं होंगे
    बस
    वे
    जो उन आंसुओं का कारण हैं...।

    बहुत गहरी रचना...। समय उन्हें भी अवश्य देख रहा है जो इस दौर में उसके मन की सुन रहे हैं, महसूस कर रहे हैं।

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  11. आज की भयवाह स्थिति को दर्शाती रचना

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  12. शुक्र है आपने वर्तमान में चल रही मार-काट व लूट-खसोट पर सवाल तो दागा, वर्ना अधिकतर लोग तो हिम्मत ही नहीं दिखाते।
    वे या तो तारीफ़ों के हवाइ पुल बांधते रहते हैं या फ़िर ऑस्ट्रिच-सा अपना सर रेत में घुसा देते हैं कि जैसे कुछ देखा ही नहीं, कुछ सुना ही नहीं

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    1. जी, बहुत आभार आपके सुंदर शब्दों के!!!

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  13. कोरोना से सीधा संवाद और उसका सटीक विश्लेषण, रचना के प्राण हैं आदरणीय विश्वमोहन जी! कथित साम्यवादियों की देन ये रोग, पूरे जोर -शोर से, सच में ही धर्म , जाति,ऊँच -नीच का भेदभाव किये बिना ही, गली -गली, घर घर में अपनी पहुँच बना साम्यवादी शैली में ही लोगों को लील रहा है! इस वायरस का स्वाभाविक ईमान और गुण- धर्म भी कवि दृष्टि से बच ना सका !इसी लिए कहते हैं, जहाँ ना पहुँचे रवि- वहाँ पहुँच कवि! लाजवाब चिंतन कोरोना के बहाने से ! सादर🙏🙏

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    1. जी, अत्यंत आभार आपकी सुंदर समीक्षा का!!!

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  14. सब धान बाइस पसेरी हो रहा । कोरोना में इंसान के लक्षण नहीं हैं। अभी तो इंसान में कोरोना के लक्षण ढूंढने में लगे रहते। जिस दिन कोरोना में इंसान के लक्षण दिखेंगे उस दिन वो अपनी मौत अपने आप मर जायेगा ।
    झकझोर देने वाली रचना ।

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    1. जी, सत्य वचन। अत्यंत आभार।

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  15. हृदय तक उतरता सृजन ।
    सटीक तीक्ष्ण दृष्टि।

    तंज और व्यंग्य का अद्भुत मिश्रण सामायिक परिपेक्ष्य में सार्थक सृजन।

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    1. जी, बहुत आभार आपके सुंदर वचनों का!!!

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  16. सब धान बाईस पसेरी साथ ही बड़ा ही स्वाभिमानी..बिन बुलाए मजाल है कहीं पहुँच जाये
    और जो बुलाए तो साम्यवादी भाव..।
    लेकिन कुछ तो है

    जो ख़ास है तुममें!
    माना म्लेछों ने भेजा तुम्हें
    हिमालय के पार से।
    पहले से कम थे क्या,
    उनके चट्टे- बट्टे यहाँ!
    फिर भी तुम तो
    कुछ इंसान-से निकल गए।
    बहुत ही लाजवाब विश्लेषणात्मक सृजन
    वाह!!!

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    1. जी, आपके आशीर्वचनों का आभार।

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