भारतीय साहित्य के आदि गुरु, आदि संपादक एवं अद्वितीय साहित्यकार जिन्होंने दुनिया के प्राचीनतम और अमर साहित्य वेदों का उपहार इस मानव संतति को दिया, महर्षि वेद व्यास के नाम से विख्यात कृष्ण द्वैपायन को आज उनकी जन्मतिथि आषाढ़ पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा) के अवसर पर शत शत नमन और समस्त प्राणियों को बधाई एवं शुभकामना!!!
आइए आज उन पर हमारे प्रिय लेखक सूर्य कांत बाली के लिखे आलेख को पढ़ें -
वेदव्यास : 5000 वर्ष पूर्व ज्ञान-विज्ञान को पीढ़ियों तक सँजोनेवाले
SURYAKANT BALI. BHARAT GATHA (Hindi Edition) . Prabhat Prakashan. Kindle Edition.
एक छोटे से आलेख में महर्षि वेदव्यास का इस देश की सभ्यता को योगदान बता पाना संभव नहीं। पर इसका कोई विकल्प भी तो हमारे पास नहीं। व्यास को हम सामान्य तौर पर महाभारतकर्ता के रूप में जानते हैं, जो ठीक ही है। पर यकीनन व्यास के बारे में इतनी जानकारी बेहद अधूरी है। लगभग आठ पीढ़ियों से जुड़े वेदव्यास की आयु कितनी लंबी रही होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। और जैसा कि हम एक पीढ़ी को औसत तीस वर्ष का समय देकर चल रहे हैं, तो व्यास की आयु ढाई-तीन सौ वर्षों के बीच ही कहीं रखी जा सकती है, इससे कम नहीं। और ये आठ पीढ़ियाँ कौन सी हैं? कृपया नाम नोट कर लीजिए—शांतनु, विचित्रवीर्य, धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, अभिमन्यु, परीक्षित, जनमेजय, शतानीक। इतनी लंबी आयु जीनेवाले वेदव्यास ने अपने जीवन का एक-एक पल सार्थक रूप से जिया। महर्षि व्यास पराशर मुनि के पुत्र थे। एक बार सत्यवती जब उन्हें अपनी नाव में बिठाकर नदी पार करा रही थी, तो सत्यवती के सौंदर्य से मुग्ध पराशर ने उससे उस नाव में ही सहवास कर लिया और सत्यवती गर्भवती हो गई। व्यास का जन्म उसी गर्भ से हुआ। विचित्र बात यह है कि स्वयं सत्यवती आद्रिका नाम की किसी अप्सरा की संतान मानी जाती हैं और सत्यवती-पुत्र व्यास भी आगे चलकर कभी घृताची नाम की अप्सरा से आकृष्ट हो गए थे और इस अप्सरा से उन्हें शुकदेव नामक परम ज्ञानी पुत्र की प्राप्ति हुई थी। इन व्यास का जन्म आज से करीब पाँच हजार वर्ष पूर्व किसी वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था, पर उनके ठीक-ठीक जन्म वर्ष के विषय में विद्वानों में मतभेद कायम है। व्यास का रंग काला था, इसलिए इनका नाम कृष्ण था। पर उसी युग में कृष्ण के नाम से जब देवकीनंदन कृष्ण की एकरूपता स्थापित हो गई तो उनसे अलग दिखाने के लिए व्यास का नाम रख दिया गया—कृष्ण द्वैपायन, अर्थात् वे कृष्ण जो द्वीप में पैदा हुए थे। व्यास के बारे में एक मजेदार सूचना यह है कि इन्हें महात्मा बुद्ध के पूर्वजन्मों में से एक माना जाता है। बौद्ध परंपरा के अनुसार बौद्ध बनने से पहले सिद्धार्थ ने अनेक पूर्वजन्म बिताए थे। इन जन्मों में बुद्ध को बोधिसत्त्व कहा गया है। ऐसे अनेक बोधिसत्त्वों में से एक का नाम कण्ह द्वैपायन (कृष्ण द्वैपायन) कहा गया है। जो लोग बौद्धों को हिंदुओं से कुछ अलग साबित करने के लिए लट्ठ उठाए फिरते हैं, यह सूचना उन्हें कुछ निराश कर सकती है। व्यास ने अपने जीवनकाल में बदरी आश्रम में घोर तपस्या की थी। यह आश्रम हिमालय में सरस्वती और अलकनंदा के संगम पर था। शायद यह आश्रम उसी स्थान पर था जहाँ आज भारत का एक महान् तीर्थ बदरीनाथ है। यहाँ तप करने के कारण व्यास का नाम बादरायण मुनि पड़ गया। तप का और प्रभाव जो हुआ सो हुआ, इसके कारण व्यास को दूरदृष्टि प्राप्त हो गई। महाभारत युद्ध के वक्त यही दूरदृष्टि उन्होंने धृतराष्ट्र को देनी चाही थी, पर धृतराष्ट्र डर गए तो फिर संजय को उन्होंने यह सुविधा मात्र युद्ध के समय के लिए प्रदान की। जरा सोचिए तो एक आदमी शांतनु के समय से लेकर जनमेजय के सर्पयज्ञ के समय ही नहीं उसके एक पीढ़ी बाद तक जीवित रहा तो क्या उसका जीवन उसके लिए भार नहीं हो गया होगा? व्यास को उनका अपना जीवन अगर भार नहीं हुआ तो उसका कारण साफ है कि उन्होंने अपने जीवन में इतने अद्भुत काम कर दिए, जो किसी एक व्यक्ति के लिए लगभग असंभव मान लिये जाएँगे। पर व्यास ने वह संभव कर दिखाया। भाषा के साथ जिनका परिचय सामान्य से अधिक है, वे जानते हैं कि व्याकरण और भाषाविज्ञान में एक शब्द है—समास, जिनका अर्थ है संक्षेप। समास से उल्टा एक शब्द है व्यास और इसका अर्थ है—विस्तार। विशेषणवाची बन जाने पर व्यास का अर्थ हो जाता है, वह व्यक्ति जिसने विस्तार कर दिया हो। आज भी हमारे देश में कथावाचकों की गद्दी को व्यास-गद्दी कहते हैं, क्योंकि कथावाचक वे लोग होते हैं, जो उदाहरण और दृष्टांत देकर, कई तरह की कथाएँ-उपकथाएँ सुनाकर कथा को खूब फैला देते हैं। कृष्ण द्वैपायन का नाम अगर व्यास पड़ गया है तो सवाल है, उन्होंने किस चीज का विस्तार किया? उत्तर उनके पूरे नाम वेदव्यास में निहित है, अर्थात् उन्होंने वेदों का विस्तार किया। अर्थ यह नहीं कि उन्होंने कोई बहुत सारे मंत्र लिख दिए। बल्कि सच्चाई यह है कि उनके नाम से एक भी मंत्र हमें लिखा नहीं मिलता। उन्हें वेदव्यास इसलिए कहा जाता है कि वेदों की चार संहिताओं का यानी यजुर्वेद संहिता, ऋग्वेद संहिता, सामवेद संहिता और अथर्ववेद संहिता का जो रूप हमें आज मिलता है, उसे वह रूप वेदव्यास ने ही दिया है और इसीलिए उनका नाम वेदव्यास पड़ गया है। ऐसा भी नहीं कि इससे पहले ये चार संहिताएँ नहीं थीं, बल्कि परंपरा यह कि इससे पहले भी समय-समय पर संहिताओं को बाकायदा ग्रंथ रूप मिलता रहा और उनमें अधिकाधिक सूक्त जुड़ते चले गए। इस पर हम पहले ही बता आए हैं। लेकिन वेदव्यास की खूबी यह है कि उन्होंने जब चार संहिताएँ बना दीं तो इसके बाद फिर उनमें कोई फेरबदल, घटा-बढ़ी नहीं हुई। जितना जुड़ा और जो जुड़ा वह थोड़ा-सा ही था, और इसे परिशिष्ट माना गया। इससे कुछ विद्वानों ने यह निष्कर्ष भी निकाला है कि वेदव्यास ने ही पिछले तीन हजार साल से अनवरत चलती आ रही मंत्र रचना की परंपरा को पूर्णविराम दिला दिया। शायद इसलिए कि तब तक मंत्र रचना की क्वालिटी में काफी गिरावट आने लगी थी। वेदव्यास ने न केवल चार संहिताओं को अंतिम रूप से ग्रंथ का आकार दे दिया, बल्कि देश भर में इसके पठन-पाठन की एक ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा का भी विकास कर दिया कि वेदों का अध्ययन-अध्यापन सारे देश में होने लगा। इस गुरु-शिष्य परंपरा का एक लाभ यह हुआ कि वेदों की प्रतिलिपियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी लिखी जाने लगीं और उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जाने लगा। परिणामस्वरूप चारों वेदों का एक शब्द तो क्या, एक मात्रा भी इधर-उधर नहीं होने पाई। संपूर्ण मंत्र राशि हमारे पास पूरी तौर पर अविकृत रूप में है और इसकी ज्ञान-परंपरा हमारी स्मृतियों का अमिट हिस्सा बन गई है। वेदों को इस तरह से हमेशा के लिए सुरक्षित कर देने के लिए उसे सैकड़ों गुरु-शिष्यों की शाखाओं में फैला देने के कारण भी कृष्ण द्वैपायन का वेदव्यास नाम सार्थक लगता है। तो क्या वेदव्यास ने अठारह महापुराणों की भी रचना की थी? परंपरा शिथिल रूप से ऐसा ही मानती है। भागवत महापुराण की रचना वेदव्यास ने की और उनके पुत्र शुकदेव ने उसे राजा परीक्षित को सुनाया, इन और दूसरे तर्कों के आधार पर एक यह धारणा लोगों के बीच बिठा दी गई है कि सभी अठारह महापुराणों की रचना वेदव्यास ने की थी। पर इतिहास के इस दूसरे घटनाचक्र को थोड़ा गंभीरता से विचारेंगे तो इसका तार्किक निष्कर्ष हम पा सकते हैं। ठीक-ठीक तारीख बता पाना शायद आज संभव नहीं होगा, परंतु महाभारत के करीब पंद्रह सौ साल बाद नैमिषारण्य में एक बहुत बड़ा हुजूम इकट्ठा हुआ था। अगर घटनाओं के सिलसिले को उनके सही संदर्भों में समझा जाए तो शौनक मुनि ने इस विशाल हुजूम को वहाँ जुटाया था। उस समय यानी महाभारत से करीब पंद्रह सौ साल बाद जिन शौनक ऋषि ने नैमिषारण्य में इतने बड़े ऋषि मुनि समुदाय को इकट्ठा किया, जाहिर है कि वे उसी शौनक ऋषि के उत्तराधिकारी वंशज थे, जिनका कभी मंत्र रचना में भारी योगदान रहा था। और इन शौनक मुनि को एक ही स्थान पर इतने सारे मुनियों को इकट्ठा करने की जरूरत अनुभव हुई तो निश्चित ही कोई बहुत बड़ा संकट देश और समाज के सामने आ खड़ा हुआ होगा। सूतजी को इस विराट् सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाया गया था और शौनक के नेतृत्व में सभी ऋषि-मुनियों ने उनसे खूब सवाल किए, जवाब पाए। नैमिषारण्य की इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना पर हम आगे चलकर लिखेंगे, इस पुस्तक के अंत में। पर इस लंबे, कई वर्षों तक चले संवाद में जो कुछ उभरा, उसी को अलग-अलग पुराणों में विस्तृत रूप में लिपिबद्ध किया गया है और उस प्रयास में नैमिषारण्य संवाद के तत्काल बाद की सदियों में उन पुराणों में काफी कुछ जोड़ा जाता रहा है। इसलिए प्रश्न यह है कि अगर उन पुराणों की रचना इस तरह से हुई तो उनका संबंध वेदव्यास से क्या है? महाभारत और भागवतपुराण में जिस शैली का जो एक तरह से वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड की शैली पर आधारित है, सूत्रपात हुआ सारे पुराण-उपपुराण चूँकि इस शैली पर आधारित हैं, इसलिए वेदव्यास के प्रभाव को वेदव्यास की रचना के रूप में मान लिया गया। दूसरा कारण यह हो सकता है कि हमारे देश की साहित्य-परंपरा में किसी पुराण-संहिता नामक एक ग्रंथ की रचना का श्रेय वेदव्यास को दिया जाता है। यह ग्रन्थ अब नहीं मिलता। चूँकि सभी पुराण किसी-न-किसी रूप में इस पुराण-संहिता से अनुप्राणित रहे होंगे, इसलिए सभी पुराणों के साथ वेदव्यास का नाम जोड़ दिया जाना अस्वाभाविक नहीं लगता। पर जिन वेदव्यास ने चारों वेदों को अंतिम रूप में पुस्तक रूप में बाँधा, एक लाख श्लोकों वाले महाभारत प्रबंधकाव्य को लिखनेवाली टीम को नेतृत्व दिया, चारों वेदों की हिफाजत के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का प्रवर्तन किया, पुराण-संहिता के रूप में आगे लिखे जानेवाले पुराणों-उपपुराणों की रचना का बीज बो दिया, भागवत महापुराण इस देश को दिया, कुरुवंश को नष्ट न होने देने के लिए विचित्रवीर्य के देहावसान के बाद उसकी पत्नियों, अंबिका और अंबालिका के साथ अपनी माँ सत्यवती के आदेश पर नियोग कर धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म होने में सहायता की, भयानक तनावों से ग्रस्त उस संकटपूर्ण युग में हमेशा धर्म और न्याय का मार्ग ही दिखाया और आजीवन, आठ पीढ़ियों में फैले अपने दीर्घ सार्थक जीवन में अनवरत सक्रियता दिखाई, इन वेदव्यास का जीवन कितनी निराशा में खत्म हुआ होगा, इसका नमूना वह श्लोक है, जिसमें वेदव्यास ने अपनी भयानक व्यथा व्यक्त ही है—‘ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चित् शृणोति माम्, धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते?’ वेदव्यास की व्यथा है कि ‘मैं बाँहें उठाकर लोगों को समझा रहा हूँ कि धर्म से ही अर्थ और काम की प्राप्ति होती है, इसलिए क्यों नहीं धर्म के मार्ग पर चलते? पर कोई मेरी सुनता ही नहीं।’ वेदव्यास की व्यथा हर उस जागरूक व्यक्ति की पीड़ा है, जो जानता है कि कैसे दुनिया ठीक चल सकती है, पर जिसकी सुनी नहीं जाती।
SURYAKANT BALI. BHARAT GATHA (Hindi Edition) . Prabhat Prakashan. Kindle Edition.
वेदव्यास की व्यथा हर उस जागरूक व्यक्ति की पीड़ा है, जो जानता है कि कैसे दुनिया ठीक चल सकती है, पर जिसकी सुनी नहीं जाती।
ReplyDeleteबस यही सच है। शुभकामनाएं।
जी, आभार!!!
Deleteवेद व्यास के संबंध में ज्ञानवर्धक लेख साझा करने के लिए सादर आभार।
ReplyDeleteवैसे उनके व्यक्तित्व की अलौकिकता,रहस्यमयी किंवदंतियों एवं महाभारतकालीन गूढ़ संबंधों से उनके व्यक्तित्व की पारदर्शिता मेरे मन पर अनेक प्रश्न उत्पन्न करती है।
लेख के मात्र निम्नलिखित पंक्तियों से अक्षरशः सहमति है मेरी।
लेख का सार:
वेदव्यास की व्यथा हर उस जागरूक व्यक्ति की पीड़ा है, जो जानता है कि कैसे दुनिया ठीक चल सकती है, पर जिसकी सुनी नहीं जाती।
शुभकामनाएं।
सादर।
जी, आभार!
Deleteबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख शेयर करने हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका.....।
ReplyDeleteवेदव्यास की व्यथा हर उस जागरूक व्यक्ति की पीड़ा है, जो जानता है कि कैसे दुनिया ठीक चल सकती है, पर जिसकी सुनी नहीं जाती।
सही कहा यदि सोचा जाय तो उनकी लम्बी उम्र में उन्हें हमेशा व्यथित ही रहना पड़ा होगा जो उनके लिए अभिशाप सी बन गयी होगी।
जी, आभार।
Deleteमहत्वपूर्ण ग्रंथ..
ReplyDeleteकालांतर में शोधकार्य में सहायक सिद्ध हो जाएगा
सादर नमन..
जी, आभार।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7 -7 -2020 ) को "गुरुवर का सम्मान"(चर्चा अंक 3755) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
जी, अत्यंत आभार आपका!!!!
Deleteआदरणीय विश्वमोहन जी , सबसे पहले माननीय बाली जी का ये ज्ञानवर्धक लेख साझा करने के लिए हार्दिक आभार | छोटा सा लेख ढेरों जानकारियां समेटे हुए है | गुरु परम्परा के गौरव ' वेदव्यास जी '' को कुछ भी कहना सूर्य को दीपक सिखाने के जैसा है | उनका रहस्यमय और आलौकिक व्यक्तित्व भले किंवदंती माना जाए, पर वे सनातन संस्कृति के आधारस्तम्भ माने गए हैं | महाभारत के रचियता के रूप में ही नहीं अपितु समस्त द्वापरयुगींन कालखंड पर उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण है | शांतनु से लेकर शतानीक की पीढ़ी तक उनकी मौजूदगी [ मेरे लिए ये जानकारी नयी है ] हैरान करने वाली है | आज के समय में आम मानव की औसत आयु बहुत कम है , संभवतः इसलिए कि आज के समय में किसी व्यक्ति के तीन से चार सौ साल के जीवनकाल की कल्पना बहुत अविश्वसनीय लगती है| पर ये भी सच है , हमारी ऋषिपरम्परा में ऐसे अनगिन उदाहरण मिलते हैं जहाँ योग , साधना और आयुर्वेद के अनुसार जीवन जीने वाले ऋषि दीर्घजीवी हुए हैं , च्यवन ऋषि जैसे ऋषि ने अश्विनीकुमारों के उपचार से पुनः यौवन प्राप्त किया था इसलिए वेदव्यास के दीर्घ जीवन का सच भी झुठलाया नहीं जा सकता | महाभारतकालीन समाज में ; नियोग क्रिया ' की स्वीकार्यता अचम्भित करती है | कदाचित ये व्यास सरीखे चिंतकों की उपस्थति ही होगी , जिसने इस क्रिया को मान्यता दिलवाई | अन्यथा आज के शिक्षित समाज में भी इस तरह की परम्पराओं के लिए कोई जगह नहीं | भले इसकी शुरुआत निसंतान राजसी विधवा स्त्रियों से उतराधिकारी की चाह के फलस्वरूप हुई होगी पर इसका लाभ संबल के रूप में एक संतान पाने के अधिकार के रूप में , आम नारी को भी मिला होगा | व्यासजी के कृष्ण द्विपायन नाम और समास से व्यास की परिभाषा लेखक के विद्वत पक्ष की परिचायक है जिसे उन्होंने बहुत ही सार्थकता से सिद्ध भी किया है | वेद भाष्य के संकलनकर्ता के रूप में वेदव्यास जी के अतुलनीय योगदान का कोई सानी नहीं है | जानकर अच्छा लगा कि उनके कार्य की मौलिकता पर किसी ने प्रश्न नहीं उठाये और ना ही उस पर आलोचकों की शंकालु दृष्टि पडी और आज भी उनके द्वारा संकलित मंत्रराशि अपने अविकृत रूप में संग्रहित है | वेद हमारी अनमोल धरोहर हैं और उनका ज्ञान आज भी प्रासंगिक है | उनकी समस्त मन्त्र राशि को उनकी प्रकृति के अनुसार चार संहिताओं के रूप में संकलन का जो अतुलनीय सफल प्रयास उन्होंने किया था ,उससे वे अनंत कालीन युगपुरुष के रूप में प्रतिष्ठापित रहेंगे | समस्त गुरु सत्ता के पुरोधा को कोटि नमन और आपको शुभकामनाएं और पुनः आभार इस सुरुचिपूर्ण विषय को पढवाने के लिए | सादर
ReplyDeleteअत्यंत बेबाक और सार्थक टिपण्णी के लिए ह्रदय से आभार! हमें रचनाकार की किंवदंतियों और रहस्यों के कल्पित जाल से निकलकर उसकी रचना की आत्मा का अन्वेषण करना चाहिए. वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत के संधिस्थल पर खड़े व्यास ने भारतीय साहित्य को जो अलंघ्य उंचाई दी और उस साहित्य से निःसृत जीव-जगत और आत्म-तत्व के दार्शनिक रहस्यों को जो औपनिषदिक विस्तार मिला, उस पर बिना उसमें गोते लगाए हम छोटी कविता-किस्से लिखने वाले लोगों के लिए किसी प्रश्न उठाने की कल्पना करना या टिपण्णी करना निश्चय ही आपके शब्दों में सूरज के सामने एक तुच्छ दीये का दुस्साहस ही कहा जाएगा. एक लाख श्लोकों वाले प्रबंध काव्य के रचयिता और इस आर्यावर्त के आध्यात्मिक साहित्य की पहचान के प्रतीक पुरुष का गुरुत्व सर्वदा इस संसार को अपने आकर्षण में बांधे रहेगा. बहुत आभार आपका!
Deleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteजी, आभार.
Deleteवेदव्यास ही सूत्रधार रहे है वेद और सनातन धर्म को सुगम बनाने के, भारतीय जनमानस में उन्हें महाभारत और पुराणों का रचियता माना जाता है तथ्यपरक आलेख
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!
Deleteसहृदय धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी ,आपने बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख साझा किया।बहुत कुछ नया जानने को मिला।
ReplyDelete" वेदव्यास की व्यथा है कि ‘मैं बाँहें उठाकर लोगों को समझा रहा हूँ कि धर्म से ही अर्थ और काम की प्राप्ति होती है, इसलिए क्यों नहीं धर्म के मार्ग पर चलते? पर कोई मेरी सुनता ही नहीं।’ वेदव्यास की व्यथा हर उस जागरूक व्यक्ति की पीड़ा है, जो जानता है कि कैसे दुनिया ठीक चल सकती है, पर जिसकी सुनी नहीं जाती। "
वेदव्यास जी की कही ये बात सचमुच आश्चर्यचकित कर रही है,साथ ही साथ ये भी सिद्ध कर रही हैं कि -"गुरु "कितना भी ज्ञानवान हो महान हो अगर शिष्य सीखना ना चाहे तो गुरु कुछ नहीं कर सकता। गुरु द्रोण को भी महान अर्जुन ने बनाया था उनका सौभाग्य था जो उन्हें अर्जुन और एकलब्य जैसे शिष्यों ने सुना और उनके गुणों को खुद में धारण किया।वेदव्यास जैसे महान गुरु के होते हुए भी महाभारत रचा गया और विनाश हुआ। ये बाते ये भी सिद्ध करती हैं कि "कोई तब तक नहीं सुधर सकता जब तक वो खुद सुधरना ना चाहें। "आपका बहुत बहुत आभार एवं सादर नमस्कार
बहुत सुन्दर! लेख के तत्व की आपकी इस तलाश का अत्यंत आभार!!!
Deleteविश्वमोहन जी , किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूं, इस अद्भुत लेख को साझा करने के लिए... इस ओर तो हमने बहुत कम ही पढ़ा व सुना कि वेदव्यास जैसे महाऋषि भी इतने व्यथित हो सकते हैं...‘ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चित् शृणोति माम्, धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते?’ सबकुछ बताने के लिए काफी है, बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteजी, बिलकुल सही कहा आपने! आभार!!!
Deleteअति विस्तृत ज्ञानवर्धक लेख, महामुनि व्यास जी का नाम भारत के इतिहास में सूर्य की भांति देदीप्यमान है. आभार इस सुंदर आलेख को साझा करने के लिए.
ReplyDeleteजी, बहुत आभार आपका।
Deleteव्यास जी पर ज्ञानवर्धक लेख
ReplyDeleteजी, आभार!!!
Deleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
ReplyDeleteजी, आभार।
Deleteबहुत खूबसूरती से आपने जो लिखे है वो शब्द बहुत ही मनमोहन है
ReplyDeleteहाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है जिसमें मैंने कुछ पोस्ट डाले है आपसे निवेदन है कि आप उन्हें पढ़े और मुझे सही दिशा नर्देश दे
धन्यवाद
https://designerdeekeshsahu.blogspot.com/?m=1
जी, आभार।
Deleteयह विवेचना पूर्ण लेख पढ़ कर परम संतुष्टि मिली- आभार!
ReplyDeleteजी, आभार!!!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteबहुत ही ज्ञान वर्धक जानकारी मिली सर आप की पोस्ट से,आप के लेख से जाना की कितना कुछ रह गया था जानने के लिए, बहुत बहुत शुक्रिया,आदरणीय प्रणाम ।
ReplyDeleteबहुत आभार मेरे गम्भीर लेखों में आपकी रुचि और आपके आशीष पूर्ण वचनों का!!!
Deleteबहुत ज्ञानात्मक लेख
ReplyDeleteआभार
जी, अत्यंत आभार!!!
Deleteइतना सुंदर और ज्ञानवर्धक आलेख मेरी नजर से दूर था,बहुत आभार आपका महर्षि वेदव्यास जी के बारे में इतना सारगर्भित और जानकारी पूर्ण ज्ञान साझा करने के लिए,ऐसे आलेखों को पढ़कर अपनी संस्कृति पर गर्व होता है,आपको मेरा सादर नमन।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
Deleteआपका यह लेख गागर में सागर है विश्वमोहन जी। कल्पना कर सकता हूँ कि कितना श्रमसाध्य रहा होगा आपके लिए इसका सृजन। इससे जो मेरा ज्ञानवर्धन हुआ है, उसके लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूंगा। मैंने महाभारत के प्रामाणिक स्वरूप को लगभग पूरा पढ़ा है। व्यासजी के जन्म, उनके पुत्र शुकदेव के जन्म तथा अन्य अनेक संबंधित तथ्यों से मैं पहले भी परिचित था किन्तु आपके इस लेख के पारायण से मुझे ऐसे अनेक तथ्यों का ज्ञान हुआ जो मेरे लिए अब तक अज्ञात ही थे। अनमोल है आपका यह लेख, आपका यह प्रयास।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार। यह सूर्यकांत बाली जी का लेख है जो हमारे प्रिय लेखक हैं।
Deleteबाली जी को सादर नमन। आप अपने ब्लॉग द्वारा उनके तथा पाठकों के मध्य सेतु बने, यह भी निश्चय ही प्रशंसनीय है।
Deleteजी, बहुत आभार😀🙏
Deleteआज फिर से बाली जी के इस सारगर्भित आलेख को पढ़कर आत्मिक संतुष्टि और आनंद की अनुभूति हुई | गुरुश्रेष्ठ व्यास जी के साथ समस्त गुरु सत्ता को नमन| आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!
Deletehttps://keedabankingnews.com/nira-app-se-personal-loan-kaise-le-in-hindi/
ReplyDeleteएक अत्यंत ज्ञान वर्धक आलेख जो बुद्धि के बन्द द्वार खोलने में सक्षम है🙏
ReplyDelete