आपको लगता है न कि कुछ गज़ब की बातें हैं इस देश में . एक लुटेरा
रत्नाकर अपने जीवन के उत्तरार्ध में ईश्वर की शरण में जाकर वाल्मीकि बन जाता है और
रामायण की रचना कर घर घर में आराध्य बन जाता है.यह देश महाराणा प्रताप की पूजा
करता है और उनके पूजे जाने के मूल कारण उनके घोर शत्रु को अकबर 'महान' के रूप में
याद करता है. सरदार भगत सिंह को 'शहीदे आज़म' कहता है और उनको फांसी दिए जाने पर न
केवल मौन व्रत धारण करने बल्कि 'महात्मा' इरविन के साथ समझौते में अंग्रेजों को उनकी इस कार्यवाई को
समर्थन देने वाले गाँधी को 'बापू' कहता है. अपने स्वातंत्र्य वीर सैनिको के काले
पानी और जेल की कड़ी यातना को तीर्थ सा सम्मान देता है और आज़ादी की पूरी लड़ाई में
एक दिन भी जेल का मुंह न देखने वाले आंबेडकर और जिन्ना को भी स्वतंत्रता सेनानी की
संज्ञा देता है. धर्म के रक्षार्थ पुत्र की शहादत देने वाले सिख गुरुओं के ज़ज्बे
को नम आँखों से आदर देता है और धार्मिक
अनुष्ठान में पिता को चुनौती देने वाले नचिकेता को अपना आदर्श मानता है. ऐसी
अनगिनत घटनाये हैं जिसका ज़िक्र आपको हैरत और भ्रम में डाल सकता है.
नहीं! यह कोई भ्रम या हैरत में डालने वाली बात नहीं! यह इस महान माटी
का संस्कार है जो न्याय की तुला में गुण को गुण के पलड़े पर और दोष को दोष के पलड़े
पर तौलता है. जहाँ राम युद्ध के अंत में लक्ष्मण को रावण की विद्वता की महिमा
बताते हैं और उसे श्रद्धा सुमन अर्पित करने को प्रेरित करते हैं. जहाँ कर्ण के
मारे जाने पर कृष्ण की आँखों में आंसू आ जाते हैं और वह उसे अर्जुन से बड़ा योद्धा
बताते हैं. ये अलग बात है कि समय समय पर राजनीति और पत्रकारिता के कुछ भोंडे
दिक्भ्रमितों की 'डेमागौजरी' इस संस्कार पर जहर पटाने का काम किया करती है.
आप हमारा इशारा समझ ही गए होंगे. स्वतंत्रता प्राप्ति के सत्तर
वर्षों बाद "सोशलिस्ट, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक भारत" के अलीगढ
'मुस्लिम' विश्वविद्यालय के छात्र संघ हॉल से जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए जो
कुहराम मचा वह समकालीन परिदृश्य का एक दुखद चित्र प्रस्तुत करता है. आरोप है
जिन्ना ने घर का बँटवारा कराया था. मैं तो थोड़ी देर के लिए दहशत में आ गया कि कुछ
सिरफिरे हमारे 'अल्मा मैटर' आई आई टी रुड़की पहुंचकर वहाँ के ' मेन बिल्डिंग ' में
स्थापित परम आदरणीय थॉमसन की मूर्ति को ध्वस्त न कर दें,इस बिना पर कि वह उस
अंगरेजी राज के अंगरेज़ गवर्नर थे जिसने हमें गुलाम रखा था. या फिर इस संस्थान के
पूर्व प्रमुख जॉर्ज कौटले की तस्वीर फेंक दे. आपको बताते चले कि थोमसन ने समूचे
राष्ट्रमंडल देशों के इस सबसे पहले इंजीनियरिंग संस्थान की १८४७ में स्थापना की
थी. और इतिहास गवाह है कि महान इंजिनियर कौटले ने जब हरिद्वार से गंगा के पानी को
लेकर जाने वाली गंगा नहर का निर्माण किया तो तत्कालीन सिरफिरे धर्मांध तथाकथित गंगापुत्रों
की भीष्म प्रतिज्ञ टोली ने सर 'जी कौटले' को ' गंगा काट ले ' कहकर उनका तीव्र
विरोध किया था.
हम इस कृषि प्रधान देश भारत की उस संयुक्त परिवार व्यवस्था के जीवाणु
हैं जहाँ परिवार में दूसरे बैक्टेरिया के जनमते ही पुश्तैनी ज़मीन में उसका
नैसर्गिक हिस्सा स्वतः 'क्रिएट' हो जाता है. जिसमे, उत्पन होने वाली किसी भी बाधा
के निवारण के लिए लाठी, भाला , बन्दुक से लेकर यहाँ की अदालतें और क़ानून अपनी
चिरंतन सेवा देने के लिए अहर्निशं तत्पर हैं. जहाँ बँटवारा न्याय और कानून सम्मत
है. जहाँ उसकी "रखो अपनी धरती तमाम, दे दो केवल पाँच ग्राम" मांग नहीं
पूरी होने पर महाभारत छिड़ जाता है जो इस माटी का गौरव ग्रन्थ है. जहाँ राज हड़पने
के लिए बेटे द्वारा बाप की ह्त्या करने की मगध साम्राज्य की पुश्तैनी परम्परा है.
हमारा मतलब आपको आत्महीनता के गर्त में नहीं धकेलना है बल्कि इस बात
के लिए सजग करना है कि आत्म-मुग्धता के मोह जाल से निकलकर बातों को हम उचित परिप्रेक्ष्य में लें. उनका
समय और स्थान के सन्दर्भ में वस्तुनिष्ठ परीक्षण और मूल्याङ्कन करें और एक शिक्षित
सोच विकसीत करें.
यह बात निर्विवाद है कि देश के विभाजन की पटकथा से पटाक्षेप तक जिन्ना
एक सबसे बड़े खलनायक थे. इसलिए मैं उस
जीनियस वकील जिन्ना की वकालत नहीं कर रहा हूँ जो गाँधी के न केवल गुरुभाई थे बल्कि
बड़े भाई थे. अर्थात, राजनीति में सीनियर थे ( इस जोड़ी का कुछ परिवर्द्धित रूप में
स्वतात्र्योत्तर संस्करण देवी लाल और वी पी सिंह को मान सकते हैं उस 'राष्ट्रीय
एकता महायज्ञ' को याद कर जो वी पी सिंह ने देवी लाल को राजनितिक पटकनी देने के लिए
संपन्न की थी). दोनों गुरु गोखले के चेले थे. जिन्ना की तमन्ना थी "हम
मुस्लिम गोखले बनें". बाल गंगाधर तिलक ने अपने मुकदमे का उन्हें स्वयं वकील
बनाया और राजद्रोह के मामले में जिन्ना ने तिलक को जेल जाने से बचाया. इसके पहले
के मामले में तिलक को मांडले जेल भेजने वाले जज की विदाई समारोह का जिन्ना ने यह
कहकर सार्वजनिक बहिष्कार किया कि हमारे राष्ट्रभक्त तिलक को दण्डित करने वाले
जस्टिस में हमारी कोई श्रद्धा नहीं. लार्ड मिन्टो के समक्ष आगा खान के हिन्दू
विरोधी वक्तव्य का न केवल विरोध किया बल्कि गुज़राती अखबार के सम्पादक को पत्र
लिखकर आगा खान को मुस्लिम प्रतिनिधि मानने से इनकार कर दिया. वक्फ बोर्ड और इंडियन
मिलिट्री अकादमी की स्थापना में योगदान दिया. कांग्रेस में रहते ही भारतीय
मुसलमानों में राष्ट्रीय भाव जगाने के उद्देश्य से मज़हरुल हक़ और प्रसिद्द देशभक्त न्यायविद
एम सी छागला जैसे नेताओं के साथ मुस्लिम
लीग से जुड़े. अपनी प्रबल सांप्रदायिक और मुस्लिम तुष्टिकरण विरोधी मिजाज़ में गाँधी
के उस खिलाफत का घोर विरोध किया जिसमे कट्टर मज़हबी मुसलमानों ने अफगानिस्तान के
राजा से भारत पर आक्रमण का न्योता दिया था और गाँधी ने इसे समर्थन भी दिया था.
तिलक के साथ स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दू मुस्लिम एकता का राष्ट्रवादी संस्कार
पुष्ट करने के लिए लखनऊ समझौता किया. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंगरेजों से
स्वराज मांगने के लिए सड़क पर उतर आये. उनके राष्ट्रीय तेवर से जनता इतनी गदगद हुई
कि चंदा कर जिन्ना हॉल का निर्माण कराया. काकोरी केस के स्वतंत्रता सेनानियों का
केस लड़ा.
सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा जब
तक फिरोजशाह मेहता, गोखले और तिलक जिंदा रहे. फिर गाँधी पसरने लगे, नेहरु इतराने
लगे और जिन्ना छितराने लगे. फिर तो एक ऐसा दौर आया जब वे राजनीतिक ठिकाने लगते
प्रतीत हुए. उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. पहले खिलाफत और फिर मोतीलाल नेहरु रिपोर्ट में उनकी अनदेखी और
उपेक्षा उनको भयंकर रूप से टीसने लगी. और फिर बहुत आगे चलकर १९३७ के चुनावों में
कांग्रेस द्वारा उनकी घोर अवहेलना ने उनको कांग्रेस से बूरी तरह तोड़ दिया. निराशा और बीमारी की अवस्था में वापस इंग्लैण्ड
अपनी बहन के साथ लौट गए थे ये तकरीबन तय कर कि अब अदालती तक़रीर में ता जिंदगी बिता
देंगे. लेकिन कुछ ही वर्षों बाद मृतप्राय मुस्लिम लीग को फिर से जिलाने की इल्तिजा लेकर कट्टरपंथी मुसलमान उनके पास गोलबंद होने लगे. थोड़ी ना नुकुर के बाद एक दूसरे
जिन्ना का जन्म हुआ जिसने गाँधी, नेहरु और कांग्रेस के पैरो तले अपने कुचले अहंकार
के फन को साम्प्रदायिकता और मज़हबी कट्टरपंथिता के 'संजीवन' ज़हर से भरपूर भरकर फुंफकारना
शुरू किया.
अब मैं यहाँ इतिहास बांचने नहीं बैठा हूँ. उस के पन्ने आप खुद उलट कर
अपनी आँखों से देखे. यह बताने आया हूँ आपको. किसी दूसरे की सुनकर कि कौआ आपका कान लेकर
भाग गया, कौए के पीछे न दौड़े! पहले अपना कान देखें! सरोजिनी नायडू, मोहम्मद करीम
छागला, लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह, ऐताज़ अहसन, डॉ अजीत जावेद, आयेशा जलाल, अकबर
अहमद, एच एम सीरवाई, क्रिस्टोफर ली, हेक्टर बोलिथा और स्टैनली वाल्पोर्ट जैसे कई
लेखकों की पुस्तकों की भरमार पडी है आपके इतिहास ज्ञान के लिए. मेरा तो बस इतना
कहना है कि लोकतंत्र हमारे लिए महज़ एक व्यवस्था नहीं बल्कि एक संस्कार है. हम अपनी
अभिव्यक्तियों में और प्रतिक्रियाओं में अपनी माटी के संस्कार को न भूलें. घर में
बंटवारा हो जाने के बाद अपने घर में टंगे अविभाजित संयुक्त परिवार के पुराने फोटो
में हम आग नहीं लगाते बल्कि स्मृतियों के रूप में सहजते हैं. साझी विरासत हमारा
स्वभाव है.
ऐसा न हो कि संपेरो के देश का
संपेरा अपनी बीन भूल जाए और सांप की फुफकार पर स्वयं नाचने लगे. अलादीन का चिराग
यहाँ के लिए एक आयातित चिराग है जिसका इस्तेमाल कुछ ख़ास किसिम के फिरकापरस्त खास
खास समयों में अपनी रोटी सेंकने के लिए करते हैं. समय आते ही चिराग रगड़ देते है.बामुलाहिजा होशियार!
एक बार फिर उन्होंने चिराग रगडा है और इस बार सामने उपस्थित हो गया है "जिन्ना का जिन्न"!!
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आदरणीय विश्वमोहन जी -सबसे पहले सादर आभार कि आपने अपने भूले बिसरे ब्लॉग की सुधि ले एक विचारोत्तेजक लेख से इसकी रौनक लौटाई | लग रहा था आप इसे शुरू कर भूल ही गये | आपका लेख पढ़ा | बहुत जानकारियां पायी | जिन्ना के बहाने से आपने विषय का गहन विवेचन कर पाठकों को कई अदृश्य और अनजाने तथ्यों [ जो कि आम नहीं होते ] से अवगत तो कराया ही एक नितिगत संदेश भी दिया | स्मरण कराया कि माटी के संस्कार सर्वोपरि औरसार्वभौम हैं |बिना किसी इतिहास का अवलोकन किये एक लीक पर चलना बहुत ही घातक है | इससे राष्ट्र की अखंडता को आधार देने वाली विचारधारा कमजोर पड़ती है | जिन्ना का नाम इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना देश का इतिहास जिसे कोई भी कितना चाहे बदल नहीं सकता | दोनों देशों का इतिहास एक ही रहेगा | ये संयुक्त परिवार सरीखा ही है | जिन्ना के साथ सत्ता लोलुप दूसरे लोग भी बराबर के हिस्से दार थे जिन्होंने महत्वकांक्षी जिन्ना को जन्म दिया और बंटवारे में अहम भूमिका निभाई | सबसे कुत्सित प्रयास रहा विभाजन को साम्प्रदायिकता से रंग हमेशा के लिए दो देशों के भी विषैली मानसिकता का बीजारोपण करना | और दुखद है किये प्रयास सफल भी रहा | आज सचमुच विवेक से चिंतन की जरूरत है | अपने इतिहास के बारे में जरुर जानना चाहिए ताकि भ्रामक घटनाएँ देश का माहौल खराब करने ना पायें | सार्थक आलेख के लिए सादर आभार | आशा है कि ऐसे ही चिंतनपरक लेख आते रहेंगे और ब्लॉग की रौनक बरकरार रहेगी | सादर ---
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आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!
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वाह!!
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Indira Gupta
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👌👌👌वाह ..लाजवाब कथन विचारणीय ...सोचना ही होगा ...की और ध्यान आकर्षित करता हुआ .नमन
जिन्ना का जिन्न .....शब्द बेहद वजन दार रहा
🙏
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Vishwa Mohan
+Kusum Kothari आभार!!!
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Vishwa Mohan
+Indira Gupta आभार !!!
आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!
Deleteबेहतरीन लेख।🌻
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार।
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