Saturday, 30 October 2021

लाल, पाल, बाल! (लघुकथा)

 ...सिर्फ बारह बोतल पानी लेकर गए थे। तीन दिन तक खाना नहीं खाया। बिस्कुट खाकर गुजारा किया... मेरे 'आर्य'पुत्र!, मेरे लाल!....हे लोक पाल!

उफ्फ! इतनी यातना तो  मेरे बाल (गंगाधर तिलक) ने भी मांडले जेल में नहीं सही..!!!!!