tag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post8899488355984395179..comments2024-03-07T20:49:24.150+05:30Comments on गलथेथरई: हिंदी की हत्या के विरुद्ध!विश्वमोहनhttp://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-50465806175414614712019-04-05T18:10:18.292+05:302019-04-05T18:10:18.292+05:30आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी ...आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-31058589927815542692019-04-05T18:10:08.571+05:302019-04-05T18:10:08.571+05:30आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी ...आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-64347658108500777012019-04-05T18:09:56.416+05:302019-04-05T18:09:56.416+05:30आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी ...आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-4884698221726481482019-04-05T18:09:29.916+05:302019-04-05T18:09:29.916+05:30आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी ...आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-4861891178033382312019-04-05T18:09:14.473+05:302019-04-05T18:09:14.473+05:30आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी ...आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-3087218876428220522019-04-05T18:08:31.228+05:302019-04-05T18:08:31.228+05:30आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी ...आपने जिस गंभीरता और मनोयोग से इसे पढ़ा और फिर आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रया का हार्दिक आभार!विश्वमोहनhttps://www.blogger.com/profile/14664590781372628913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-90957364953135953382019-04-01T22:21:03.399+05:302019-04-01T22:21:03.399+05:30प्रभावशाली सोचने को विवश करती लेख..प्रभावशाली सोचने को विवश करती लेख..Pammi singh'tripti'https://www.blogger.com/profile/13403306011065831642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-34584176099691786452019-04-01T09:23:54.711+05:302019-04-01T09:23:54.711+05:30विचारणीय आलेख।
बहुत कुछ प्रतिक्रिया स्वरूप लिखा जा...विचारणीय आलेख।<br />बहुत कुछ प्रतिक्रिया स्वरूप लिखा जा चुका<br />क्या बस इतना करके हम जिम्मेदारी से मुक्त हैं? मन की वीणाhttps://www.blogger.com/profile/10373690736069899300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-27605625926201497502019-03-30T17:59:28.649+05:302019-03-30T17:59:28.649+05:30चिंतनीय।चिंतनीय।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-79722412638203602952019-03-27T16:01:59.736+05:302019-03-27T16:01:59.736+05:30आपका साझा किया गया यह आलेख पढ़कर हम सोच में पड़ गये ...आपका साझा किया गया यह आलेख पढ़कर हम सोच में पड़ गये क्या सच में हिंदी की दशा इतनी दयनीय है?<br />यह लेख हिंदी भाषा के प्रति आपकी चिंता और चिंतन को स्पष्ट कर रहा है। किंतु मेरी दृष्टि में आजकल स्थितियां उत्साहजनक दिखाई दे रहीं हैं। अब हिंदी में अधिक लिखा जा रहा है। अब अधिक लिखने वाले सामने आ रहे हैं।<br /><br />इंटरनेट ने आज एक बड़ा और वैश्विक मंच रचनाकारों को उपलब्ध कराया है। हिंदी में लिखा जा रहा है, हिंदी में खोजा जा रहा है और पढ़ा जा रहा है। गूगल ने भी खोज परिणाम में हिंदी के लेखों को वरीयता दी है। <br /> यह सीमित हो सकता है क्योंकि अब नींव में हिंग्लिश के बोये बीजोंं से संकर प्रजाति की भाषा का प्रादुर्भाव होने लगा है जिनके तनों,पत्तियों,फूलों एवं फलों का आस्वादन करनि ही हमारे व्यक्तित्व विकास और प्रगति का द्योतक हो चला है।<br />हिंदी माध्यम से पढ़ने वालों को एक वर्ग विशेष से जोड़कर देखा जाता है जो अविकसित है और कुछ नहीं तो फिसड्डी का तमगा तो मिल ही जाता है,हिंदी पढ़कर पेटभर रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल से होता है , आखिर क्यों हमारी शिक्षा-प्रणाली को इतना समृद्ध नहीं।<br />कहने को बहुत सारी बातें हैं..पर करने के लिए बस इतना ही कि हम जड़़ो को मजबूत करें ,यही.एकमात्र उपाय सूझता है। <br />और हाँ अभी भी हिंदी के प्राण शेष है हम ऐसी उम्मीद कर सकते हैं कि सार्थक प्रयास, अपने योगदान और पहल से हिंदी को उचित मान और नवजीवन मिल सके।<br /><br />आभार आपका और आदरणीय संजय सर का इस वैचारिकी आलेख के लिए।<br />सादर प्रणाम।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-57001504518988521002019-03-25T23:57:59.227+05:302019-03-25T23:57:59.227+05:30आदरणीय विश्वमोहन जी -- सबसे पहले सादर आभार इस विच...आदरणीय विश्वमोहन जी -- सबसे पहले सादर आभार इस विचारणीय लेख को पाठकों की चेतना जगाने के भाव से शेयर करने के लिए | क्षमा प्रार्थी हूँ किमाननीय प्रभु जोशी जी जैसे चिन्तक से परिचित नहीं लेकिन उनका ये अनमोल लेख सचमुच झझकोरने वाला है | हिन्दी अपने देश में वो स्थान नहीं पा सकी जिसकी वो हकदार है ऐसा सुना था, पर सोशल मीडिया से जुड़ने के बाद लगा कि हिन्दी दूसरे रूप में बहुत ही फल- फूल रही है | मैंने कहीं पढ़ा था ब्लॉग जगत में हिन्दी के लगभग पचास हजार हिंदी ब्लॉगर सक्रिय हैं जो अपने अपने ढंग से बहुत उत्तम मध्य या किसी भी स्तर पर हिन्दी के लिए अपना योगदान दे रहे हैं |[हालाँकि अगर मैं गलत हूँ तो क्षमा प्रार्थी हूँ ] इनमें छात्रों से लेकर घरेलु महिलाएं तक सब शामिल हैं | फिर हिन्दी के अस्तित्व को मिटाने का ये कुत्सित प्रयास क्यों ? आज हिंदी पढने के लिए बढती विदेशी छात्रों की संख्या बढ़ रही है तो हिंदी प्रेमियों के चलते हिंदी विश्व की उल्लेखनीय भाषाओँ की सूचि में अपना महत्वपूर्ण स्ठ्हन बनाने में सफल हो रही | देश का अहोभाग्य कि एक अहिन्दी भाषी प्रान्त से आने वाले माननीय प्रधानमन्त्री ने हिंदी को सम्मान दिलाने में कोई कसर नहीं छोडी | उनके देश के नाम महत्वपूर्ण सम्बोधन हिन्दी में ही होते हैं | फिर हिंदी को मिटाने की षड्यंत्रकारी कवायद क्यों ?हिंदी को पढने वालों की समूची पीढ़ी अभी कायम है फिर रोमन में हिन्दी लिखने की नौबत कहाँ से आ गयी ? ये बहुत दुखद है | कितना अच्छा हो सरकार मातृभाषा के लिए कोई सख्त कानून लाये और देशद्रोह की तरह ही मातृभाषा से द्रोह पर भी कानून बने क्योकिं दूसरे की माँ को माँ कहिये मानिये भी पर अपनी माँ के तिरस्कार की शर्त पर नहीं | हिन्दी हमारी माँ है | उसके मान का मर्दन ना हो इसके लिए सक्षम लोगों को जो सर्वसमर्थ हैं उन्हें आगे आना होगा | क्योकि हिंदी भारत माता का अक्षुण संस्कार है | इसे मिटाने वाले आते रहेंगे और जाते रहें पर इसके प्रेमियों की संख्या कहीं अधिक है | फिर भी यदि सचमुच बीमार मानसिकता वाले भाषाविद कुछ ऐसा करने की कोशिश करें जैसा की लेख में उल्लेख किया गया है उसके विरोध के लिए पूरे देश के हिंदी प्रेमी कोई कम नहीं | जय हिन्द जय हिन्दी | एक बार फिर से आभार चिंतनपरक पोस्ट शेयर करने के लिए | सादर -- रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-38106587470974878.post-66236793080949899512019-03-25T22:07:19.267+05:302019-03-25T22:07:19.267+05:30'युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को स्टूडेंट्स ने अ...<br />'युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को स्टूडेंट्स ने अपने पेरेंट्स के साथ राइटिंग में कम्प्लेंट की है कि मार्कशीट्स के डिले होने से उनके दूसरे इन्स्टीट्यूट्स में एडमिशंस में चांसेस निकाले जाएँगे।'..... <br />अब तो बहुत सारे हिंदी समाचार टीवी चैनल्स भी यही भाषा बोल रहे हैं।अधिकांश हिंदी सीरियलों की भाषा यही है जो घर घर में देखे जा रहे हैं। मैं एक अंग्रेजी माध्यम की प्राइवेट पाठशाला (कान्वेन्ट नहीं) में हिंदी की शिक्षिका हूँ। वहाँ जब मैं ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करती और सारे हिंदी शब्दों का ही प्रयोग करती हूँ तो सहकर्मी मुँह दबाकर हँसते हैं। उनके नजरिए से यही विकास की भाषा है। पूरी तरह से धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने में हम सक्षम ना हों तो इस तरह की अंग्रेजी तो बोल ही सकते हैं ना !!!मैं सिंधीबहुल इलाके में रहती हूँ और मैंने पाया है कि अंग्रेजी शब्दों का यह मिश्रण नई पीढ़ी की सिंधी भाषा में भी हो गया है। लोकल ट्रेन में आते जाते समय अधिकांश सुशिक्षित मराठीभाषी लोगों को मराठी के साथ धड़ल्ले से अंग्रेजी शब्द मिलाकर बोलते सुन रही हूँ। ऐसी खिचड़ी भाषा बोलकर लोग खुशफहमी का शिकार हैं कि वे अपनी मातृभाषा में बोल रहे हैं। वे इस ओर ध्यान ही कहाँ देते हैं कि इस तरह वे अपनी मातृभाषा की हत्या कर रहे हैं। <br />लेख बहुत ही प्रभावशाली है। बोलचाल की हिंदी में अनावश्यक रूप से अंग्रेजी शब्दों का तड़का लगाने की कोई जरूरत नहीं है। जहाँ कोई पर्याय ना हो वहाँ अंग्रेजी शब्द का प्रयोग करने में मुझे कोई आपत्ति भी नहीं है। हिंदी या किसी भी प्रादेशिक भाषा को रोमन लिपी में लिखने के मैं सख्त खिलाफ हूँ। वाट्सअप और फेसबुक और ट्विटर पर अधिकांश हिंदी रोमन में ही लिखी जा रही है। कई जगह आप दक्षिण भारतीयों को भी तेलुगू, तमिल आदि भाषाएँ रोमन में लिखते हुए पाएँगे। अंग्रेजी टाइपिंग का सुविधाजनक होना भी इसका एक कारण है। हमारी युवा पीढ़ी अपनी भाषाओं के प्रति गंभीर नहीं है। अंग्रेजी का संपूर्ण ज्ञान और मातृभाषा / हिंदी भाषा का कामचलाऊ ज्ञान इसी में वे संतुष्ट हैं।Meena sharmahttps://www.blogger.com/profile/17396639959790801461noreply@blogger.com